बाजरा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनबाजरा संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर्जरी] एक प्रकार की बड़ी घास जिसकी बालो में हरे रंग के छोटे छोटे दान लगते हैं । इन दानों की गिनती मोटे अन्नों में होती है । प्रायाः सारे उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी भारत में लोग इसे खाते हैं । जोंघरिया । बजड़ा । विशेष—इस अनाज की खेती बहुत सी बातों में ज्वार की खेती से मिलती जुलती होती है । यह खरीफ की फसल है और प्रायः ज्वार के कुछ पीछे वर्षा ऋतु में बोई और उससे कुछ पहले अर्थात् जाड़े के आरंभ में काटी जाती हैं । इसके खेतों में खाद देने या सिंचाई करने की विशेष आवश्यकता नहीं होती । इसके लिये पहले तीन चार बार जमीन जोत दी जाती है और तब बीज बो दिए जाते हैं । एकाध बार निराई करना अवश्य आवश्यक होता है । इसके लिये किसी बहुत अच्छी जमीन की आवश्यकता नहीं होती और यह साधारण से साधारण जमीन में भी प्रायः अच्छी तरह होता है । यहाँ तक कि राजपूताने की बलुई भूमि में भी यह अधिकता से होता है । गुजरात आदि देशों में तो अच्छी करारी रूई बोने से पहले जमीन तयार करने के लिय इस े बोते हैं । बाजरे के दानों का आटा पीसकर और उसकी रोटी बनाकर खाई जाती है । इसकी रोटी बहुत ही बलवर्धक और पुष्टिकारक मानी जाती है । कुछ लोग दानों को यों ही उबालकर और उसमें नमक मिर्च आदि डालकर खाते हैं । इस रुप में इसे 'खिचड़ी' कहते हैं । कहीं कहीं लोग इसे पशुओं के चारे के लिये ही वोते हैं । वैद्यक में यह वादि, गरम, रूखा, अग्निदीपक पित्त को कुपित करनेवाला, देर में पचनेवाला, कांतिजनक, बलवर्धक और स्त्रियों के काम को बढा़नेवाला माना गया है ।