बर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनबर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वर]
१. वह जिसका विवाह होता हो । दूल्हा । दे॰ 'वर' । उ॰—(क) जद्यपि बर अनेक जग माँहीं । एहि कँह सिव तजि दूसर नाहीं ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) बर अस बधू आप जब जाने रुक्मिनि करत बधाई ।—सूर (शब्द॰) । मुहा॰—बर का पानी = विवाह से पहले नहछू के समय का बर का स्नान किया हुआ पानी जो एक पात्र में एकत्र करके कन्या के घर भेजा जाता हैं और जिससे फिर कन्या नहलाई जाती है । जिस पात्र में वह जल जाता है वह पात्र चीनी, खांड़ आदि से भरकर लड़केवाला के घर लोटा दिया जाता हैं ।
२. वह आशीर्वाद सूचक वचन जो किसी की प्रार्थना पूरी करने के लिये कहा जाय । दे॰ 'वर' । उ॰—यह बर माँग्यो दियो न काहू । तुम मम मन ते कहूँ न जाहू ।—केशव (शब्द॰) ।
बर ^२ वि॰
१. श्रेष्ठ । अच्छा । उत्तम ।
२. सुंदर । अनेकार्थ॰, पृ॰ १४२ । मुहा॰—बर परना = बढ़ निकलना । श्रेष्ठ होना । उ॰—अर ते टरत न बर परैं दई मरकि मनु मैन । होड़ाहोड़ी बढ़ि चले चित चतुराई नैन ।—बिहारी (शब्द॰) ।
बर पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बट] वट वृक्ष । बरगद । उ॰— कौन सुभाव री तेरो परयो बर पूजत काहे हिए सकुचाती ।—प्रताप (शब्द॰) ।
बर पु ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ बल] बल । शक्ति । उ॰—(क) परे भूसि नहिं उठत उटाए । बर करि कृपासिंधु उर लाए ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) खीन लंक टूटी दुख भरी । विन रावन केहि वर होय खरी ।—जायसी (शब्द॰) । (ग) देख्यों में राजकुमारन के बर ।—केशव (शब्द॰) ।
बर ^५ अव्य॰ [फ़ा॰]
१. बाहर ।
२. ऊपर । पर । मुहा॰—बर आना या पाना = बढ़कर निकलना । मुकाबले में अच्छा ठहरना । जैसे,— झूठ बोलने में तुमसे कोई बर नहीं पा सकता । (या आ सकता) ।
बर ^६ वि॰
१. बढ़ा चढ़ा । श्रेष्ठ ।
२. पूरा । पूर्ण । (आज्ञा या कामना आदि के लिये जैसे, मुराद बर आना ।
बर ^७ पुं॰
१. शरीर । देह ।
२. गोद । क्रोड़ । (को॰) ।
३. फल । यौ॰—बरे अबा = आम की फसल की आय या मालगुजारी ।
बर ^८ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बल (= सिकुड़न)] रेखा । लकीर । मुहा॰—बर खाँचना या खींचना = (१) किसी बात के संबंध में दृढ़ता सूचित करने के लिये लकीर खींचना । (प्रायः लोग दृढ़ता दिखा ने के लिये कहते हैं कि मैं बर (लकीर) खींचकर यह बात कहता हूँ ।) उ॰—तेहि ऊपर राघव बर खाँचा । दुहज आजु तो पंडित साँचा ।—जायसी (शब्द॰) ।
२. हठ दिखलाना । अड़ना । जिद करना । उ॰— हिंदू देघ काह बर खाँचा । सरगहु अब न सूर सों बाँचा ।—जायसी (शब्द॰) । बर बाँधना = प्रतिज्ञा करना । उ॰— लँधउर घरा देव जस आदी । और को बर बाँधै को बादी ।—जायसी (शब्द॰) ।
बर ^९ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का कीड़ा जिसे खाने से पशु मर जाते हैं ।
बर ^१० अव्य॰ [सं॰ बरम्, हिं॰ बरु] बरन् । बल्कि उ॰—सुनि रोवत सब हाय बिरह ते मरन भली बर ।—व्यास (शब्द॰) ।
बर ^११ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] बाल या बार का समस्त शब्दों में प्रयुक्त रूप जैसे, बरटुट । बरतोर ।