प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बंध संज्ञा पुं॰ [सं॰ बन्ध]

१. बंधन । उ॰—तासु दूत कि बंध तर आवा । प्रभु कारज लगि आपु बँधावा ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. गाँठ । गिरह । उ॰—जेतोई मजबूत कै हिच बध बाँधो जाय । तेतोई तामें सरस भरत प्रेम रस आय ।—रसनिधि (शब्द॰) ।

३. कैद । उ॰—कृपा कोप बध बंध गोसाई । मोपर करिय दास की नाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।

४.

४. पानी रोकने का धुस्स । बाँध ।

५. कोकशास्त्र के अनुसार रति के मुख्य सोलह आसनों में से कोई आसन । उ॰—परिरभन सुख रास हास मृदु सुरति केलि सुख साजे । नाना बंध विविध क्रीड़ा खेलन स्याम अपार ।—सूर (शब्द॰) । विशेष—मुख्य सोलह आसन ये हैं—(१) पदमासन । (२) नागपाद । (३) लतावेष्ट । (४) अधंसंपुट । (५) कुलिश । (६) सुंदर । (७) केशर । (८) हिल्लोल । (९) नरसिंह । (१०) विपरीत । (११) क्षुब्धक । (१२) धेनुक । (१३) उत्कंठ । (१४) सिंहासन । (१५) रतिनाग । (१६) विद्याधर । रतिमजरी में सोलह आसनों का उल्लेख किया गया है । पर अन्य लोग इसकी संख्या ८४ तक ले जाते हैं ।

६. योगशास्त्र के अनुसार योगसाधन की कोई मुद्रा । जैसे, उड्डिपानबंध, मुलबंध, जालंघरबंध, इत्यादि ।

७. निर्बंध- रचना । गद्य या पद्य लेख तैयार करना । उ॰—ताते तुलसी कृत कथा रचित महर्षि प्रवंध । बिरचौं उभय मिलाय कै राम स्वयंवर बंध ।—रघुराज (शब्द॰) ।

८. चित्र- काव्य में छंद को ऐसी रचना जिससे किसी विशेष प्रकार की आकृति या चित्र बन जाय । जैसे, छत्रबंध, कमलबंध, खड्गबंध, चमरबंध इत्यादि ।

९. जिससे कोई वस्तु बाँधी जाय । बंधन जैसे, रस्सी, फीता इत्यादि ।

१०. लगाव । फँसाव । उ॰—बेधि रही जग बासना निरसल मेद सुगंध । तेहि अरघान भँवर सब लुबुधे तजहिं न बंध ।—जायसी (शब्द॰) ।

११. शरीर ।

१२. बननेवाले मकान की लंबाई और चौड़ाई का येग ।

१३. गिरवी रखा हुआ धन ।

१४. बधन (मोक्ष का उलटा) ।

१५. पट्टी किनारा (को॰) ।

१६. परिणाम । फल (को॰) ।

१७. एक नेत्ररोग (को॰) ।

१८. केश बाँधने का फीता (को॰) ।

१९. प्रदर्शन (को॰) ।

२१. पकड़ना । बंधन में डालना (को॰) ।

२२. स्नायु (को॰) ।

२३. शरीर की स्थिति । अंगन्यास (को॰) ।

२४. पुल (को॰) ।