बँकाई संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बंक + आई (प्रत्य॰)] वक्रता । तिरछापन । उ॰—(क) गढ़रचना बरुनी अलक चितवन भौँह कमान । आघु बँकाई हीं बढ़ै वरुनि तुरंगम तान ।—बिहारी र॰, दो॰ ३१६ । (ख) कुंजर हंस सौं छीनि लई गति भौंह कमान सों लीन्ह बँकाई ।—मोहन॰, पृ॰ ६७ ।