प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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फेरी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ फेरना]

१. दे॰ 'फेरा' ।

२. दे॰ 'फेर' । ३ परिक्रमा । प्रदक्षिणा । भाँवरी । जैसे—सोमवती की फेरी । क्रि॰ प्र॰—डालना ।—पडना ।—देना । मुहा॰—फेरी पड़ना = भाँवर होना । विवाह के समय वर कन्या का साथ साथ मंडपस्तंभ, अग्नि की परिक्रमा करना ।

४. योगी या फकीर का किसी बस्ती में भिक्षा के लिये बराबर आना । उ॰—(क) आशा को ईंधन करूँ मनसा करूँ भभूत । जोगी फिरि फेरी करूँ यों बनि आवै सूत ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) रूप नगर दृग जोगिया फिरत सो फेरी देत । छबि मनि पावत हैं पल झोरि भरी लेत ।—रसनिधि (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देना ।—लगाना ।

५. कई बार आना जाना । चक्कर । उ॰—न्योते गए नँदलाल कहूँ सुनि बाल बिहाल बियोग की घेरी । ऊतर कौनहूँ क े पद्माकर दै फिरि कुंजगलीन में फेरी ।—पद्माकर (शब्द॰) ।

६. किसी वस्तु को बेचने के लिये उसे लादकर गाँव गाँव गली गली घूमना । भाँवरी ।

७. वह चरखी जिसपर रस्सी पर ऐंठन चढा़ई जाती है ।