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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

फेर ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फेरना]

१. चक्कर । घुमाव । घूमने की क्रिया दशा या भाव । उ॰—(क) ओहि क खंड जस परबत मेरू । मेरुहि लागि होइ अति फेरू ।—जायसी (शब्द॰) (ख) फेर सों काहे को प्राण निकासत सूधेहि क्यों नहिं लेत निकारी ।—हनुमान (शब्द॰) । मुहा॰—फेर खाना = घुमाव का रास्ता तय करना । सीधा न जाकर इधर उधर घूमकर अधिक चलना । जैसै,—मैं तो इसी रास्ते जाऊँगा, उधर उतना फेर खाने कौन जाय ? फेर पड़ना = घुमाव का रास्ता पड़ना । साधा न पड़ना । जैसे,— उधर से मत जाओ बहुत फेर पडे़गा, मैं सीधा रास्ता बताता हूँ । फेर बाँधना = क्रम या तार बँधना । सिलसिला लगना । फेर बाँधना = सिलसिला डालना । तार बाँधना । फेर की बात = घुमाव की बात । बात जो सीधी सादी न हो ।

२. मोड । झुकाव । मुहा॰—फेर देना = घुमाना । मोडना । रूख बदलना ।

३. परिवर्तन । उलट पलट । रद बदल । कुछ से कुछ होना । यौ॰—उलट फेर । मुहा॰—दिनों का फेर = समय का परिवर्तन । जमाने का बदलना । एक दशा से दूसरी दशा की प्राप्ति ( विशेषतः अच्छी से बुरी दशा की ) । उ॰—(क) दिनन को फेर होत मेरु होत माटी को ।—(शब्द॰) । (ख) हंस बगा के पाहुना कोइ दिनन का फेर । बगुला कहा गरविया बैठा पंख बिखेर ।—कबीर (शब्द॰) । समय का फेर =दे॰ 'दिनों का फेर' । उ॰— मरत प्यास पिँजरा परयो सुआ समय के फेर । आदर दै दै बोलियत बायस बलि की बेर ।—बिहारी (शब्द॰) । कुफेर =(१) बुरे दिन । बुरी दशा । (२) बुरा अवसर । बुरा दाँव । सुफेर =(१)अच्छे दिन । अच्छी दशा । (२) अच्छा अवसर । अच्छा मौका । उ॰—पेट न फूलत बिनु कहे कहत न लागत बेर । सुमति बिचारे बोलिए समुझि कुफेर सुफेर ।—तुलसी (शब्द॰) ।

४. बल । अंतर । फर्क । भेद । जैसे—यह उनकी समझ का फेर है । उ॰—(क) कबिरा मन दीया नहीं तन करि डारा जेर । अंतर्यामी लखि गया बात कहन का फेर ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) नदिया एक घाट बहुतेरा । कहैं कबीर कि मन का फेरा ।—कबीर (शब्द॰) । (ग) मीता । तू या बात को हिथे गौर करि हेर । दरदवंत बेदरद को निसि बासर को फेर ।—रसनिधि (शब्द॰) । मुहा॰—फेर पड़ना = अंतर या फर्क होना । भेद पड़ जाना । उ॰— दरजी चाहत थान को कतरन लेहुँ चुराय । प्रीति ब्योंत में, भावते ! बडो़ फेर परि जाय ।—रसनिधि (शब्द॰) । यौ॰—हेर फेर ।

५. असमंजस । उलझन । दुबधा । अनिश्चय की दशा । कर्तव्य स्थिर करने की कठिनता । जैसे,—वह बडे़ फेर में पड़ गया है कि क्या करे । उ॰—घट मँह बकत चकतभा मेरू । मिलहि न मिलहि परा तस फेरू ।—जायसी (शब्द॰) । मुहा॰—फेर में पड़ना = असमंजस में होना । कठिनाई में पड़ना । फेर में डालना = असमंजस में डालना । अनिश्चय की कठिनता सामने लाना । किंकर्तव्यमूढ करना । जैसे,— तुमने तो उसे बडे़ फेर में डाल दिया ।

६. भ्रम । संशय । धोखा । जैसे,—इस फेर में न रहना कि रूपया हजम कर लेंगे । उ॰—माला फेरत जुग गया गया न मन का फेर । कर का मनका छोड़ के मन का मनका फेर ।— कबीर (शब्द॰) ।

७. चाल का चक्कर । षट्चक्र । चाल- बाजी । जैसे—तुम उसके फेर में मत पड़ना, वहाँ बड़ा धूर्त हैं । मुहा॰—फेर में आना या पड़ना = धोखा खाना । फेर फार की बात = चालाकी की बात ।

८. उलझाव । बखेड़ा । जंजाल । प्रपंच । जैसे,—(क) रूपए का फेर बड़ा गहरा होता है । (ख) तुम किस फेर में पडे़ हो, जाओ अपना काम देखो । मुहा॰— निन्नानबे का फेर = सौ रूपए पूरे करने की दुन । रूपया बढा़ने का चसका ।

फेर पु ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] ओर । दिशा । पार्श्व । तरफ । उ॰— सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर । प्रभु आगमन जनाव जनु नगर रम्य चहुँ फेर—तुलसी (शब्द॰) ।

फेर ^३पु अव्य॰ [हिं॰] फिर । पुनः । एक बार और । उ॰— (क) । सुनि रवि नाउ रतन भा राता । पंडित फेर उहै कहु बाता ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) । ऐहे न फेर गई जो निशा तन यौवन है धन की परछाहीं ।—पद्माकर (शब्द॰) ।

फेर ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰] ऋगाल । गीदड़ ।

फेर पलटा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फेर + पलटा ] गोना । द्विरागमन ।

फेर बदल संज्ञा पुं॰ [हिं॰फेर + अ॰ बदल] परिवर्तन ।