प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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फूलना क्रि॰ अ॰ [हि॰ फूल + ना (प्रत्य॰)]

१. फूलों से युक्त होना । पुष्पित होना । फूल लाना । जैसे— यह पोधा वसंत में फूलेगा । उ॰— (क) फूलै फरै न बेत जदपि सुधा बरसहि जलद ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) तरूवर फूलै फलै परिहरै अपनी कालहि पाई ।— सूर (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰— जाना ।—उठना ।—आना । मुहा॰— फूलना फरना = धन धान्य, संतति आदि से पूर्ण और प्रसन्न रहना । सूखी और संपन्न होना । बढ़ना और आनंद में रहना । उन्नति करना । उ॰— फूलौ फरौ रहौ जहँ चाही यहै असीस हमारी ।—सूर (शब्द॰) ।फूलना फलना = (१) प्रफूल्ल होना । उल्लास में रहना । प्रसन्नःहोना । (२) दे॰ 'फूलना फरना' । फूली फाली = प्रफूल्लित प्रसन्न वदन । उ॰— फूली फाली फूल सी फिरती विमल विकास । भोर तरैयाँ होयँगी चलत तोहि पिय पास ।—बिहारी (शब्ट॰) ।

२. फूल का संपुट खुलना जिससे उसकी पंखड़ियाँ फैल जायँ । विकसित होना । खिलना । उ॰— (क) फूलै कुमुद केति उजि- यारे ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) फूलि उठे कमल से अमल हितु के नैन, कहै रघुनाथ भरे चैन रस सियरे । —रघुनाथ (शब्द॰) ।

३. भीतर किसी वस्तु के भर जायँ या अधिक होने के कारण अधिक फैल या बढ़ जाना । ड़ीप डीप या पिंड का पसरना । जैसे, हवा भरने से गेंद फूलना, गाल फूलना, भिगोया हुआ चना फूलना, पानी पड़ने से मिट्टी फूलना, कड़ाह में कचौरी फूलना ।

४. सतह का उभरना । आसपास की सतह से उठा हुआ होना ।

५. सूजना । शरीर के किसी भाग का आसपास की सतह से उभरा हुआ होता । जैसे— जहाँ चोट लगी वहाँ फूला हुआ है और दर्द भी है । संयो॰ क्रि॰— आना ।

६. मोटा होना । स्थूल होना । जैसे,— उसका बदन बादी से फूला है ।

७. गर्व करना । घंमड़ करना । इतरना । जैसे,— जरा तु्म्हारी तारीफ कर दी बस तुम फूच गए । उ॰— कबहुँक बैठयो रहसि रहसि के ढ़ोटा गोद खेलायो । कबहुँक फूलि सभा में बैठयो मुछनि ताव दिखायो ।— सूर (शब्द॰) । (ख) वेठि जाइ सिहासन फुली । अति अभियान त्रास सब भूली ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰— फूले फिरना = गर्व करते हुए घुमना । घमंड़ में रहना । उ॰— मनवा तो फूला फिरै कहै जो करता धर्म । कोटि करम सिर पर चढ़ै चेति न देखे मर्म ।— कबीर (शब्द॰) । फूलकर कुप्पा होना =(१) अत्यधिक आनंद, गर्व या हर्ष युक्त होना । (२) अत्यंत स्थुल होना ।

८. प्रफुल्ल होना । आनंदित होना । उल्लास में होना । बहुत खुश होना । मगन होना । उ॰—(क) परमानंद प्रेम सुख फूले । बीथिन फिरै मगन मन भूले ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) अति फूले दशरथ मन ही मन कौशल्या सुख पायो । सौमित्रा कैकयि मन आनँद यह सब ही सुत जायी ।— सूर (शब्द॰) । मुहा॰— फूला फिरना या फूला फूला फिरना = प्रसन्न घुमना । आनद में रहना । उ॰—(क) फूली फिरति रोहिणी मैया नखसिख किए सिंगर । —सूर (शब्द॰) । (ख) फूले फिरत अयोध्यावासी गनत न त्यागत पीर । परिरंमन हँसि देत परस्पर आनंद नैनन नीर ।—सूर (शब्द॰) । (ग) फूले फले फिरत है आज हमारे व्याह ।—(प्रचलित) । फूले अँग अँग वपु न समान = आनंद का इतना अधिक उद्बैग होना कि बिना प्रकट किए रहा न जाय । अत्यंत आनंदित होना । उ॰—(क) उठा फूलि अँग नाहि समाना । कंथा टूक टूक भहराना । —जायसी (शब्द॰) । अति आनंद कोलाहल घर घर फूले अँग न समात ।— सूर (शब्द॰) । (ग) चेरी चंदन हाथ कै रीझि चढा़यो गात । विहवल छिति धर डिंभ शिशु फूले वपु न समात ।— केशव (शब्द॰) । फूले फरकना पु = प्रफुल्ल होकर घुमना । फुले फरकत लै फरी पर कटाच्छ करवार । करत, वचावत पिय नयन पायक घाय हजार ।— बिहारी (शब्द॰) । फूले न समाना = दे॰ 'फुले अंग न समाना' । उ॰— आधुनिक मत की प्रसंसा में फूले महीं समाने । प्रेअवस॰, भा॰ २, पृ॰ २०८ ।

६. मुँह फुलाना । कठना । मान करना । जैसे,— वह तो वहाँ फुलकर बैठा है ।