फिरकी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनफिरकी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ फिरकना]
१. वह गोल या चक्राकार पदार्थ जो बीच की कीली को एक स्थान पर टिकाकर घूमता हो ।
२. लड़कों का एक खिलौना जिसे वे नचाते हैं । फिरहरी ।
३. चकई नाम का खिलौना । उ॰—नई लगनि कुल की सकुचि बिकल भई अकुलाय । दुहँ ओर ऐंची फिरै फिरकी लौं दिन जाय ।—बिहारी (शब्द॰) ।
४. चमड़ें का गोल टुकड़ा जो तकवे में लगाकर चरखे में लगाया जाता है । चरखे में जब सूत कातते है तब उसके लच्छे को इसी के दूसरे पार लपेटते हैं ।
५. लकड़ी, धातु वा कद्दू के छिलके आदि का गोल टुकड़ा जो तागा बटने के तकवे के नीचे लगा रहता है ।
६. मालखंभ की एक कसरत जिसमें जिधर के हाथ से माल- खभ लपेटते है उसी ओर गर्दन झुकाकर फुरती से दूसरे हाथ के कंधे पर मालखंभ को लेते हुए उड़ान करते हैं । यौ॰—फिरकी का नक्कीकस = मालखंभ की एक कसरत । (इसमें एक हाथ अपनी कमर के पास से उलटा ले जाते हैं और दूसरे हाथ से बगल में मालखंभ दबाते हैं और फिर दोनों हाथों की उँगलियों को बाँट लेते हैं । इसके पीछे जिधर का हाथ कमर पर होता है उसी ओर सिर और सब धड़ को घुमाकर सिर को नीचे की ओर झुकाते हुए मालखंभ में लगाकर दंडवत् करते हैं) । फिरकी दंड = एक प्रकार का कस- रत या दंड जिसमें दंड करते समय दोनों हाथों को जमाकर दोनों हाथों के बीच में से सिर देकर कमान के समान हाथ उठाए बिना चक्कर मारकर जिस स्थान से चलते हैं फिर वहीं आ जाते हैं ।
७. कुश्ती का एक पेंच ।