प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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फण संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ फणा]

१. साँप का सिर उस समय जब वह अपनी गर्दन के दोनों ओर की नलियों में वायु भर कर उसे फैलाकर छत्राकार बना लेता है । फन । उ॰— फण न बढ़ावत नागहू जो छेडयो नहि होइ ।—शकुंतला, पृ॰ १२९ । पर्या॰—फणा । फटा । फट । स्फट । दर्वी । भोग । स्फुट । विशेष—इस शब्द के अंत में धर, कर, घृत, वत् शब्द लगाकर बनाया हुआ समस्त पद साँप का बोधक बनता है ।

२. रस्सी का फंदा । मुद्धी । कीआरी ।

३. नाव में ऊपर के तखते की वह जगह जो सामने मुँह के पास होती है । नाव का ऊपरी अगला भाग ।