फटका
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनफटका ^१ संज्ञा पुं॰ [अनु॰]
१. धुनिए की धुनकी जिससे वह रूई आदि घुनता है ।
२. वह लकड़ी जो फले हुए पेड़ों में इसलिये बाँधी जाती है कि रस्सी के हिलने से वह उठकर गिरे और फट फट का शब्द हो जिससे फल खानेवाली चिड़ियाँ उड़ जायँ अथवा पेड़ के पास न आएँ ।
३. कोरी तुकबंदी । रस और गुण से हीन कविता । क्रि॰ प्र॰—जोड़ना ।
४. तड़फड़ाहट । मुहा॰—फटका खाना = तड़फना । तड़फड़ाना ।
फटका ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फाटक] दे॰ 'फाटक' ।
फटका ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फटकन] एक प्रकार की बलुई भूमि जिसमें पत्थर के टुकड़े भी होते है और जो उपजाऊ नहीं होती ।
फटका ^४ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फटकना] फटकने, पछोरने या धुननेवाली गालीगलौज भरी कजली । उ॰—इन कजलियों को वे लोग 'फटका' के नाम से पुकारते हैं ।—प्रमघन॰, भा॰ २, पृ॰ ३४५ ।