प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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फकीर संज्ञा पुं॰ [अ॰ फकीर] [स्त्री॰ फकीरन, फकीरनी]

१. भीख माँगनेवाला । भिखमंगा । भिक्षुक । उ॰— साहिन के उमराव जितेक सिवा सरजा सब लूट लिए है । भूषन ते बिनु दौलत ह्वँ कै फकीर ह्लै देस विदेस गए हैं ।—भूषण (शब्द॰) ।

२. साधु । संसारत्यागी । उ॰— उदर समाता अन्न ले तनहि समाता चीर । अधिकाई संग्रह ना करै तिसका नाम फकीर ।— कबीर (शब्द॰) ।

३. निर्धन मनुष्य । वह जिसके पास कुछ न हो । मुहा॰— फकीर का घर बढ़ा है = फकीर को अपनी फकीरी की शक्ति से सब कुछ प्राप्त है । फकीर की सदा = माँगने के लिये फकीर की आवाज या पुकार ।