प्रवृत्ति
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनप्रवृत्ति है, त्याग का व्यापार निवृत्ति । ये दोनों इच्छा और द्वेषपूर्वक होते हैं । श्वास प्रश्वास आदि व्यापार जो इच्छा और द्वेषपूर्वक नहीं होते जीवनयोनि प्रयत्न कहलाते हैं ।
३. वर्णों के उच्चारण में होनेवाली क्रिया । विशेष—उच्चारण प्रयत्न दो प्रकार का होता है—आभ्यंतर और बाह्य । ध्वनि उत्पन्न होने के पहले वागिंद्रिय की क्रिया को आभ्यंतर प्रयत्न कहते हैं और ध्वनि के अंत की क्रिया को बाह्य प्रयत्न कहते हैं । आभ्यंतर प्रयत्न के अनुसार वर्णों के चार भेद हैं—(१) विवृत—जिनके उच्चारण में वगिंद्रिय खुली रहती है, जैसे, स्वर । (२) स्पृष्ट—जिनके उच्चारण में वागिंद्रिय का द्वार बंद रहता है, जैसे, 'क' से 'म' तक २५ व्यंजन । (३) ईषत् विवृत—जिनके उच्चारण में वागिंद्रिय कुछ खुली रहती है, जैसे य र ल व । (४) ईषत् स्पृष्ट—श ष स ह । ब्राह्य प्रयत्न के अनुसार दो भेद हैं अघोष और घोष । अघोष वर्णों के उच्चारण में केवल श्वास का उपयोग होता है । कोई नाद नहीं होता, जैसे— क ख, च छ, ट ढ त, थ, प, फ, श, ष और स । घोष वर्णों के उच्चारण में केवल नाँद का उपयोग होता है—शेष व्यंजन और सब स्वर ।
प्रवृत्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. प्रवाह । बहाव ।
२. झुकाव । मन का किसी विषय की ओर लगाव । लगन । जैसे,—उसकी प्रवृत्ति व्यापार की ओरक नहीं है ।
३. वार्ता । वृतांत । हाल । बात ।
४. यज्ञादि व्यापार ।
५. न्याय में एक यत्न विशेष । विशेष—वाणी, बुद्धि और शरीर से कार्य के आरंभ को प्रवृत्ति कहते हैं । राग द्वेष भले बुरे कामों में प्रवृत्त कराते हैं । इष्टसाधनता ज्ञान प्रवृत्ति का ओर द्विष्टसाधनता ज्ञान निवृत्ति का कारण होता है ।
६. प्रवर्तन । काम का चलना ।
७. सांसरिक विषयों का ग्रहण । संसार के कामों में लगाव । दुनिया के धंधे में लीन होना । प्रकृति का उलटा ।
८. उत्पत्ति । आरंभ ।
९. शब्दार्थ- बोधक शक्ति (को॰) ।
१०. भाग्य । किस्मत । (को॰) ।
११. उज्जयिनी का एक नाम (को॰)
१२. (गणित में) गुणक । गुणक अंक (को॰) ।
१३. हाथी का मद । यौ॰—प्रवृत्तिज्ञ । प्रवृत्तिनिमित्त =प्रवृत्ति का कारण । किसी विशिष्ट अर्थ में शब्दप्रयोग का कारण । प्रवृत्तिपराङमुख = जिसकी समाचार देने में रुचि न हो । प्रवृत्तिपुरुष =गुप्तचर । प्रवृत्तिमार्ग =भौतिक जीवन के कार्यव्यापारों में आसक्ति । प्रवृत्तिलेख =मार्गदर्शन करनेवाला । आलेख । प्रवृत्तिविज्ञान ।