प्रमाण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनप्रमाण ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह कारण या मुख्य हेतु जिससे ज्ञान हो । वह बात जिससे किसी दूसरी बात का यथार्थ ज्ञान हो । वह बात जिससे कोई दूसरी बात सिद्ध हो । सबूत । विशेष—प्रमाण न्याय का मुख्य विषय है । गौतम ने चार प्रकार के प्रमाण माने हैं—प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और शब्द । इंद्रियों के साथ संबंध होने से किसी वस्तु का जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष है । लिंग (लक्षण) और लिंगी दोनों के प्रत्यक्ष ज्ञान से उत्पन्न ज्ञान को अनुमान कहते हैं । (दे॰ न्याय) । किसी जानी हुई वस्तु के सादृश्य द्वारा दूसरी वस्तु का ज्ञान जिस प्रमाण से होता है वह उपमान कहलाता है । जैसे, गाय के सदृश ही नील गाय होती है । आप्त या विश्वासपात्र पुरुष की बात को शब्द प्रमाण कहते हैं । इन चार प्रमाणों के अतिरिक्त मीमांसक, वेदांती और पौराणिक चार प्रकार के और प्रमाण मानते हैं—ऐतिह्य, अर्थापत्ति, संभव और अभाव । जो बात केवल परंपरा से प्रसिद्ध चली आती है वह जिस प्रमाण से मानी जाती है उसको ऐतिह्य प्रमाण कहते हैं । जिस बात से बिना किसी देखी या सुनी बात के अर्थ में आपत्ति आती हो उसके लिये अर्थापत्ति प्रमाण हैं । जैसे, मोटा देवदत्त दिन को नहीं खाता, यह जानकर यह मानना पड़ता है कि देवदत्त रात को खाता है क्योंकि बिना खाए कोई मोटा हो नहीं सकता । व्यापक के भीतर व्याप्य—अंगी के भीतर अंग—का होना जिस प्रमाण से सिद्ध होता है उसे संभव प्रमाण कहते हैं । जैसे, सेर के भीतर छटाँक का होना । किसी वस्तु का न होना जिससे सिद्ध होता है वह अभाव प्रमाण है । जैसे चूहे निकलकर बैठे हुए हैं इससे बिल्ली यहाँ नहीं है । पर नैयायिक इन चारों को अलग प्रमाण नहीं मानते, अपने चार प्रमाणों के अंतर्गत मानते हैं । और किन किन दर्शनों में कौन कौन प्रमाण गृहीत हुए हैं यह नीचे दिया जाता है ।— चार्वाक—केवल प्रत्येक प्रमाण । बौद्ध—प्रत्यक्ष और अनुमान । सांख्य—प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम । पातंजल—प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम । वैशेषिक—प्रत्यक्ष और अनुमान । रामानुज पूर्णप्रज्ञ—प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम । धर्मशास्त्र में किसी व्यवहार या अभियोग के निर्णय में, चार प्रमाण माने गए हैं—लिखित (दस्तावेज), मुक्ति (कब्जा), साक्ष्य (गवाही) और दिव्य । प्रथम तीन प्रकार के प्रमाण मानुष कहलाते हैं ।
२. एक अलंकार जिसमें आठ प्रमाणों में से किसी एक का कथन होता है । जैसे अनुमान का उदाहरण—घन गर्जन दामिनि दमक धुरवागन धावंत । आयो बरषा काल अब ह्वै है बिरहिनि अंत । विशेष—प्रायः सब अलंकारवालों ने केवल अनुमान अलंकार ही माना है, प्रत्यक्ष आदि और प्रमाणों को अलंकार नहीं माना है । केवल भोज ने आठ प्रमाणों के अनुसार प्रमाणा- लंकार माना है जिनका अनुकरण अप्पय दीक्षित ने (कुवलयानंद में) किया है । काव्यप्रकाश आदि में प्रत्यक्ष आदि को लेकर प्रमाणालंकार नहीं निरूपित हुआ है ।
३. सत्यता । सचाई । उ॰—कान्ह जू कैसे दया के निधान हौ जानौ न काहू के प्रेम प्रमानहिं ।—दास (शब्द॰) ।
४. निश्चय प्रतीति । दृढ़ धारणा । यकीन । उ॰—अंतरजामी राम सिय तुम सर्वज्ञ सुजान । जौ फुर कहहुँ तो नाथ मम कीजिय वचन प्रमान ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) जौ तुम तजहु, भजहुँ न आन प्रभु यह प्रमान मन मोरे । मन, वच, कर्म नरक सुरपुर तहँ जहँ रघुबीर निहोरे ।—तुलसी (शब्द॰) ।
५. मर्यादा । थाप । साख । मान । आदर । ठीक ठिकाना । उ॰—बिनु पुरुषारथ जो बकै ताको कौन प्रमान । करनी जंबुक जून ज्यों गरजन सिंह समान ।—दीनदयाल गिरि (शब्द॰) ।
६. प्रामाणिक बात या वस्तु । मानने की बात । आदर की चीज । उ॰—रण मारि अक्षकुमार बहु बिधि इंद्रजित सों युद्ध कै । अति ब्रह्म शस्त्र प्रमाण मनि सो दृश्य मो मन युद्ध कै ।—केशव (शब्द॰) ।
७. इयत्ता । हद । मान । निर्दिष्ट परिणाम, मात्रा या संख्या । अंदाज । जैसे,—इसका प्रमाण ही इतना, इतना बडा़ या यह होता है । उ॰—(क) कौन है तू, कित जाति चली, बलि, बीती निसा अधिराति प्रमानै ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) अतल, वितल अरु सुतल तलातल और महातल जान । पाताल और रसातल मिलि कै सातौ भुवन प्रमान ।—सूर (शब्द॰) ।
८. शास्त्र ।
९. मूलधन ।
१०. प्रमाणपत्र । आदेशपत्र । उ॰—रामलखन जू सों बोलि कह्यो कुलपूज्य आयो है प्रमान हौं तो जनक पै जायहौ ।—हनुमान (शब्द॰) ।
११. विष्णु का एक नाम (को॰) ।
१२. संघटन । एका (को॰) ।
१३. नियम (को॰) ।
प्रमाण ^२ वि॰
१. सत्य । प्रमाणित । चरितार्थ । ठीक घटता हुआ । उ॰—(क) बरख चारिदस बिपिन बसि करि पितु वचन प्रमान । आइ पाय पुनि देखिहौ मन जनि करसि गलान ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) मिलहिं तुमहि जब सप्त ऋषीसा । तब जनेउ प्रमान बागीसा ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. मान्य । माना जानेवाला । स्वीकार योग्य । ठीक । उ॰—(क) कहि न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान । नाई रामपद कमल सिर बोले गिरा प्रमान ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) कहि भेज्यों सु नवाब सो सब सुनीं सुजान । कही, कि कहो नवाब सों हमको सबै प्रमान ।—सूदन (शब्द॰) ।
३. परिमाण में तुल्य । बड़ाई आदि में बराबर । उ॰—पन्नग प्रचंड पति प्रभु की पनच पीन पर्वतारि पर्वत प्रमान पावई ।— केशव (शब्द॰) ।
प्रमाण ^३ अव्य॰ अवधि या सीमासूचक शब्द । पर्यत । तक । उ॰— (क) कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं । सत जोजन प्रमान लै धावै ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) धनु लीन मंडल कीन सबकी आँख तेहि छन ढँपि गई । तेहि तानि कान प्रमान शब्द महान धरनी कँपि गई ।—गोपाल (शब्द॰) ।
प्रमाण कोटि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] प्रमाण मानी जानेवाली बातों या वस्तुओं का घेरा । जैसे, आचारनिर्णय में तंत्र प्रमाणॉ कोटि में नहीं है ।