पोस
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनपोस ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पोष] पालने की कृतज्ञता । पालनेवाले के साथ प्रेम या हेलमेल । जैसे,—कुत्ते बहुत पोस मानते हैं; तोते पोस नहीं मानते ।
२. तृष्टि । संतोष । उ॰—कोऊ आवै भाव लै, कोउ लै आवै अभाव । साधु दोऊ को पोस दै, भाव न गिनै अभाव ।—कबीर (शब्द॰) ।
पोस † ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पौष] पौष महीना । पूस का मास । उ॰— देखी सखी हिव लागै छइ पोस ।—बी॰ रासो, पृ॰ ६७ ।
पोस पु ^३ वि॰ [सं॰ पुष्ट] पुष्ट । श्रेष्ठ । उ॰—बरनत हैं उल्लास सो, सकल सुकवि मति पोस ।—भूषण ग्रं॰, पृ॰ ६१ ।
पोस पु ^४ संज्ञा पुं॰ [फा़॰ पोश] चादर । बिछावन । उ॰— लगी मिठाई रासि दुहूँ दिसि दीपक धरे कतारी । बिछी पलँग पयफेनु मैनु सम पोस परयो रुचिकारी ।—भारतेंदु॰ ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ८५ ।