पोल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनपोल ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पोला]
१. शून्य स्थान । अवकाश । खाली जगह । जैसे, ढोल के भीतर पोल ।
२. खोखलापन । भराव का अभाव । सारहीनता । अँतःसारशून्यता । यौ॰—पोलदार = जिसमें पोल या खोखलापन हो । पोला । खोखला । पोलपाल = खोखलापन । जो भीतर से एकदम खाली हो । उ॰—ये सब पोलपाल कर लेखा । मिथ्या पढै़ कहै बिन देखा ।—घट॰, पृ॰ ५६२ । मुहा॰—(किसी की) पोल खुलना = भीतरी दुरवस्था प्रगट हो जाना । छिपा हुआ दोष या बुराई प्रगट हो जाना । भंडा फूटना । (किसी की) पोल खोलना = भीतरी दुरवस्था प्रगट करना । छेपे हुए दोष या बुराई को प्रगट करना । भंडा फोड़ना ।
पोल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक प्रकार का फुलका ।
२. राशि । पुंज (को॰) ।
३. मान । परिमाण (को॰) ।
पोल ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ प्रतोली, प्रा॰ पओली]
१. कहीं जाने क ा फाटक । प्रवेशद्वार । दरवाजा । उ॰—(क) पोल जडे़ रवि पेखताँ धोखै चढ़िया दीह । मिटै न कंदल जोधपुर बीबाँ घटे न बीह ।—रा॰ रू॰, पृ॰ २५७ । (ख) रावली पोले आविया—बी॰ रासो, पृ॰ ९१ ।
२. आँगन । सहन ।
पोल ^४ संज्ञा पुं॰ [अं॰]
१. लकडी़ या लोहे आदि का बडा़ लट्ठा या खंभा ।
२. जमीन की एक नाप जो ५ गज की होती है ।
३. वह ५ । । गज की जरीब जिससे जमीन नापते हैं ।
४. ध्रुव ।
पोल † ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पर्व] दे॰ 'पोरे' । उ॰—पोल पोल अगरा जग लूटी ।—प्राण॰, पृ॰ ३३० ।