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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

पैसा संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाद, प्रा॰ पाय (=चौथाई)+ अंश, प्रा॰ अस, या सं॰ पणांश]

१. ताँबे का सबसे अधिक चलता सिक्का जो पहले आने का चौथा और रुपए का चौसठवाँ भाग होता था । पाव आना । तीन पाई का सिक्का । विशेष—अब स्वतंत्र भारत में दशमिक प्रणाली के सिक्के का प्रचलन हो गया है, जिसमें पैसा दशमिक प्रणाली के आधार पर रुपए का सौवाँ भाग होता है और आजकल यह सिक्का अलमूनियम का होता है ।

२. रुपया पैसा । घन । दौलत । माल । जैसे,—उसके पास बहुत पैसा है । उ॰—साईँ या संसार में मतलब का व्यवहार । जब तक पैसा पास में तबतक हैं सब यार ।—गिरिधर (शब्द॰) । मुहा॰—पैसा उठना = धन खर्च होना । पैसा उठाना =धन व्यर्थ नष्ट करना । फजूलखर्ची करना । पैसा कमाना = धन उपार्जित करना । रुपया पैदा करना । पैसा डुबना =लगा हुआ रुपया नष्ट होना । घाटा होना । पैसा ढो ले जाना= सब धन खींच ले जाना । पैसा धोकर उठाना = किसी देवता की पूजा की मनौती करके अलग पैसा निकालकर रखना । पैसे का पचास होना =अत्यंत साधारण होना । टके मोल बिकना । उ॰—गुरुआ तो सस्ता भया पैसा केर पचास । राम नाम को बेचिके, करै सिष्य की आस ।—कबीर सा॰ सं॰, पृ॰ १५ ।