प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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पै पु † ^१ अव्य [सं॰ परम्]

१. पर । परंतु । लेकिन । उ॰— बरजत बार बार हैं तुमको पै तुम नेक न मानौ ।—सूर (शब्द॰) ।

२. निश्चय । अवश्य । जरूर । उ॰—सूख पाइहैं कान सुनें बतियाँ कल आपुस में कछु पै कहिहैं ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. पीछे । अनंतर । बाद । उ॰—(क) ऊधो । श्याम कहा पावैंगे प्रान गए पै आए—सूर (शब्द॰) । (ख) कमल भानु देखे पै हँसा ।—जायसी (शब्द॰) । यौ॰—जो पै = यदि । अगर । उ॰—जो पै रहनि राम र्सों नाहीं । तौ नर खर कूकर सूकर से जाय जियत जग माहीं ।—तुलसी (शब्द॰) । तो पै = तो फिर । उस अवस्था में ।

पै ^२ [हिं॰ पास, पहँया सं॰ प्रति, प्रा॰ पडि, पइ]

१. पास । समीप । निकट । उ॰—(क) परतिज्ञा राखी मनमोहन फिर ता पै पठयो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) ता पै कही बहुत विधि सों हम नेकु न दीनों कान ।—सूर (शब्द॰) ।

२. प्रति । ओर । तरफ । उ॰—सरसीरुह लोचन मोचत नीर चितै रघुनायक सीय पै है ।—तुलसी (शब्द॰) ।

पै ^३ प्रत्य॰ [सं॰ उपरि, हिं॰ ऊपर]

१. अधिकरण सूचक एक विभक्ति । पर । ऊपर । उ॰—(क) चढ़े अश्व पै वीर धाए सबै (शब्द॰) । (ख) कोपि चढ़े दशकंठ पै राम निशाचर सेन हिए हहरी ।—शंकर (शब्द॰) । (ग) बिहारी पै वारोंगी मालती भाँवरौ ।—हितहरिवंश (शब्द॰) ।

२. कारण सूचक विभक्ति । से । द्बारा । उ॰—दीनदयाल कृपालु कृपानिधि का पै कह्यो परै ।—सूर (शब्द॰) ।

पै ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आपत्ति (= दोप, भूल)] दोष । ऐब । नुक्स । क्रि॰ प्र॰—धरना ।—निकालना ।

पै ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पय] दे॰ 'पय' । उ॰—तन को तरसाइबो कौन बद्यौ मन तौ मिलिगौ पै मिले जल जैसो ।—ठाकुर॰, पृ॰ २९ ।

पै ^६ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पद, पाद, प्रा॰, पथ, पाथ या फा़॰] पाँव । पैर । उ॰—सा अंग बाल उतकंठ करि पै लग्गी परदच्छि फिरि ।—पृ॰ रा॰, २५ ।३५५ ।

पै ^७ संज्ञा पुं॰ [देश॰] माड़ी देने की क्रिया । कलफ चढ़ाना । क्रि॰ प्र॰—करना ।