प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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पूँजी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पुञ्ज]

१. किसी व्यक्ति या समुदाय का ऐसा समस्त धन जिसे वह किसी व्यवसाय या काम में लगा सके । किसी की अधिकारमुक्त वह संपूर्णँ सामग्री या वस्तुएँ जिनका उपयोग वह अपनी आमदनी बढ़ाने में कर सकता हो । निर्वाह की आवश्यकता से अधिक धन या सामग्री । संचित धन । संपत्ति । जमा ।

२. वह धन या रुपया जो किसी व्यापार या व्यवसाय में लगाया गया हो । वह धन जिससे कोई कारोबार आरंभ किया गया हो या चलता हो । किसी दूकान, कोठी, कारखाने, बैंक आदि की निज की चर या अचर संपत्ति । मूलधन । उ॰—पूँजी पाई साच दिनोदिन होती बढ़ती । सतगुर के परताप भई है दौलत चढ़ती ।— पलटू॰, प॰ ३९ । क्रि॰ प्र॰—लगाना । मुहा॰—पूँजी खोना या गँवाना = व्यापारा या व्यवसाय में इतना घाटा उठाना कि कुछ लाभ के स्थान पर पूँजी में से कुछ या कुल देना पड़े । ऐसा घाटा उठाना कि मूलधन की भी हानि हो । भारी घाटा या क्षति उठाना । पूँजीदार या पूँजीवाला = किसी व्यापार या उद्यम में जिसने धन लगाया हो । जिसने मूलधन या पूँजी लगाई हो ।

३. धन । रुपया पैसा । जैसे,—इस समय तुम्हारी जेब में कुछ पूँजी मालूम होती है ।

४. किसी विशेष विषय में किसी की योग्यता । किसी विषय में किसी का परिज्ञान या जानकारी । किसी विषय में किसी की सामर्थ्य या बल । (बोलचाल में क्व॰) ।

५. पु पुंज । समूह । ढेर । उ॰—रतनन की पूँजी अति राजे । कनक करधनी अति छवि छाजै ।—गोपाल (शब्द॰) ।