पुरुष
संज्ञा
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पर्याय
अनुवाद
यह भी देखिए
- पुरुष (विकिपीडिया)
प्रकाशितकोशों से अर्थ
वेदों में पुरुष का अर्थ परमात्मा अर्थात पूर्णब्रह्म लिखा हुआ है
शब्दसागर
पुरुष संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. मनुष्य । आदमी ।
२. नर ।
३. सांख्य के अनुसार प्रकृति से भिन्न भिन्न अपरिणामी, अकर्ता और असंग चेतन पदार्थ । आत्मा । इसी के सान्निध्य में प्रकृति संसार की सृष्टि करती है । दे॰ 'सांख्य' ।
४. विष्णु ।
५. सूर्य ।
६. जीव ।
७. शिव ।
८. पुन्नाग का वृक्ष ।
९. पारा । पारद ।
१०. गुग्गुल ।
११. घोडे़ की एक स्थिति जिसमें वह अपने दोनों अगले पैरों को उठाकर पिछले पैरों के बल खड़ा होता है । जमना । सीखपाँव ।
१२. व्याकरण में सर्वनाम और तदनुसारिणी क्रिया के रूपों का वह भेद जिससे यह निश्चय होता है कि सर्वनाम या क्रियापद वाचक (कहनेवाले) के लिये प्रयुक्त हुआ है अथवा संबोध्य (जिससे कहा जाय) के लिये अथवा अन्य के लिये । जैसे 'मैं' उत्तम पुरुष हुआ, 'वह' प्रथम पुरुष और 'तुम' मध्यम पुरुष ।
१३. मनुष्य का शरीर या आत्मा ।
१४. पूर्वज । उ॰— (क) सो सठ कोटिक पुरुष समेता । बसहिं कलप सत नरक निकेता ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) जा कुल माहिं भक्ति मम होई । सप्त पुरुष ले उधरै ।—सूर (शब्द॰) ।
१५. पति । स्वामी ।
१६. ज्योतिष में विषम राशियाँ (को॰) ।
१७. ऊँचाई या गहराई की एक माप । पुरसा (को॰) ।
१८. आँख की पुतली । नेत्र की तारिका (को॰) ।
१९. मेरु पर्वत (को॰) ।
पुरुष संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. पुरुष ।
२. आत्मा ।