पुरजा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनपुरजा संज्ञा पुं॰ [फा़॰पुर्जह्]
१. टुकड़ा । खंड । उ॰—सूरा सोइ सराहिए लड़े धनी के खेत । पुरजा पुरजा ह्वै परे तऊ न छाँडै़ खेत ।—कबीर (शब्द॰) । मुहा॰—पुरजे पुरजे उड़ना = टुकड़े टुकड़े हो जाना । पुरी तरह नष्ट हो जाना । उ॰—पुरजे पुरजे उड़ै अन्न बिनु बस्तर पानी । ऐसे पर ठहराय सोई महबूब बखानी ।—पलटू॰, भा॰ १, पृ॰ ३३ । पुरजे पुरजे करना या उड़ाना = खंड खंड करना । टूक टूक करना । धज्जियाँ उड़ाना । पुरजा पुरजा हो पड़ना = दे॰ 'पुरजे पुरजे होना' । उ॰—सूर न जानै कापरी सूरा तन से हेत । पुरजा पुरजा हो पड़ै, तहूँ न छाड़ै खेत ।—दरिया बा॰, पृ॰ १२ । पुरजा पुरजा हो रहना = दे॰ 'पुरजे पुरजे होना' । उ॰—सूरा सोई सराहिये, लड़ै धनी के हेत । पुरजा पुरजा होई रहै, तऊ न छाँड़ै खेत ।—कबीर सा॰ सं॰, भा॰ १, पृ॰ २३ । पुरजे पुरजे होना = खंड खंड होना । टूट फूटकर टुकड़े टुकड़े होना ।
२. कतरन । धज्जी । कटा टुकड़ा । कत्तल ।
३. अवयव । अंग । अंश । भाग । जैसे, कल के पुरजे, घड़ी के पुरजे । मुहा॰—चलता पुरजा = चालाक आदमी । तेज आदमी । उद्योगी पुरुष ।
४. चिड़ियों के महीन पर । रोईं ।