पिचकारी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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पिचकारी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ पिचकना] एक प्रकार का नलदार यंत्र जिसका व्यवहार जल या किसी दुसरे तरल पदार्थ को (नल में) खींचकर जोर से किसी ओर फेंकने में होता है । विशेष—पिचकारी साधारणत: बाँस, शीशे, लोहे, पीतल टीन आदि पदार्थों की बनाई जाती है । इसमें एक लंबा खोखला नल होता है जिसमें एक ओर बहुत महीन छेद होता है और दुसरी ओर का मुँह खुला रहता है । इस नल में एक डाट लगा दी जाती है जिसके ऊपर उसे आगे पीछे हटाने या बढ़ाने के लिये दस्ते समेत कोई छड़ लगी रहती है । जब पिचकारी का बारीक छेदवाला सिरा पानी अथवा किसी दुसरे तरल पदार्थ में रखकर दस्ते की सहायता से भीतरवाली डाट को ऊपर की ओर खींचते हैं तब नीचे के बारीक छेद में से तरल पदार्थ उस नल में भर जाता है और जब पीछे से उस डाट को दबाते हैं तब नल में भरा हुआ तरल पदार्थ जोर से निकलकर कुछ दुरी पर जा गिरता है । साधारणतः इसका प्रयोग होलियों में रंग अथवा महफिलों में गुलाब जल आदि छोड़ने के लिये होता है परंतु आजकल मकान आदि धोने और आग बुझाने के लिये बड़ी बड़ी पिचकारियों और जख्म आदि धोने के लिये छोटी पिचकारियों का भी उपयोग होने लगा है । इसके अतिरिक्त इधर एक ऐसी पिचकारी चली है जिसके आगे एक छेददार सुई लगी होती है । इस पिचकारी की सुई की शरीर के किसी अंग में जरा सा चुभाकर अनेक रोगों की औषधों का रक्त या मांसपेशी में प्रवेश भी कराया जाता है । क्रि॰ प्र॰—चलाना । —छोड़ना । —देना । —मारना ।—लगाना । मुहा॰—पिचकारी छुटना या निकलना = किसी स्थान से किसी तरल पदार्थ का बहुत वेग से बाहर निकलना । जैसे, सिर से लहु की पिचकारी छुटना । पिचकारी छोड़ना = किसी तरल पदार्थ को वेग से पिचकारी की भाँति बाहर निकलना । जैसे, पान खाकर पीक की पिचकारी छोड़ना ।