पात
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनपात ^१ वि॰ [सं॰] रक्षित । त्रात [को॰] ।
पात ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. गिरने की क्रिया या भाव । पतन । जैसे, अधःपात । यौ॰—प्रपात ।
२. गिराने की क्रिया या भाव । जैसे, अश्रुपात, रक्तपात ।
३. टूटकर गिरने की क्रिया या भाव । झड़ने की क्रिया या भाव । जैसे, उल्कापात, । द्रुमपात । ४ नाश । ध्वंस । मृत्यु । जैसे, देहपात ।
५. पड़ना । जा लगना । जैसे, दृष्टिपात, भूमिपात ।
६. खगोल में वह स्थान जहाँ नक्षत्रों की कक्षाएँ क्रांतिवृत्त को काटकर ऊपर चढ़ती या नीचे आती हैं । विशेष—यह स्थान बराबर बदलता रहता है और इसका गति वक्र अर्थात् पूर्व से पश्चिम को है । इस स्थान का अधिष्ठाता देवता राहु है ।
७. राहु ।
८. प्रहार । मार । आघात । जैसे, खड्गपात (को॰) ।
९. उड़ने की क्रिया । उडान । उड़ना (को॰) ।
पात पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पत्र, प्रा॰ पत्त]
१. पत्ता । पत्र । मुहा॰—पातों आ लगाना = पतझड़ होना या उसका समय आना । विशेष— उर्दू की पुरानी कविता में इस मुहावरे का प्रयोग मिलता है ।
२. कान में पहनने का एक गहना । पत्ता ।
३. चाशनी । किवाम । पत्त ।
पात ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पात्र, प्रा॰ पात (=दाल देने योग्य गुणी) ] कवि । (डिं॰) । उ॰—पात सुजस अखियात पयंपै दातव असमर बात दुवै । —रघु॰ रु॰, पृ॰ १९ ।
पात ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पात्र ] दे॰ 'पातुर' । उ॰—राव आव्या की साँभली बात । नाचउ रुप मनोहर पात । गढ़ माहीं गुडी़ उछली । धरि धरि तोरण मंगलचार । —वी॰ रासो, पृ॰ ९१ ।