परा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनपरा ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. चार प्रकार की वाणियों में पहली वाणी जो नादस्वरूपा और मूलाधार से निकली हुई मानी जाती है ।
२. वह विद्या जो ऐसी वस्तु का ज्ञान कराती है जो सब गोचर पदार्थो से परे हो । ब्रह्मविद्या । उपनिषद बिद्या ।
३. एक प्रकार का सामगान ।
४. एक नदी का नाम ।
५. गंगा ।
६. बाँझ ककोड़ा । बंध्या कर्कोटकी ।
परा ^२ वि॰ स्त्री॰ [सं॰]
१. जो सबसे परे हो ।
२. श्रेष्ठ । उत्तम ।
परा ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पारना] रेशम खोलनेवालों का लकड़ी का बारह चैदह अंगुल लंबा एक औजार ।
परा ^४ संज्ञा पुं॰ [ फा़॰ पर्रह् ? ] पंक्ति । कतार । दे॰ 'पर्रा' । उ॰—राजकुमार कला दरसावत पावत परम प्रसंसा । सखा प्रमोदित परा मिलावता जहँ रधुकुल अवतंसा ।—रघुराज (शब्द॰) ।
परा ^५ उप॰ [सं॰] संस्कृत का एक उपसर्ग जो अर्थ में प्रातिलोम्य, आभिमुख्य, धर्षण, प्राधान्य, विक्रम, स्वातंञ्य, गमन, घातन आदि विशेषताएँ व्यक्त करता है । जैसे, पराहत, परागत, पराधीन, पराक्रांत, पराजित आदि [को॰] ।