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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

परलोक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. दूसरा लोक । वह स्थान जो शरीर छोड़ने पर आत्मा को प्राप्त होता है । जैसे, स्वर्ग, बैकुंठ आदि । यौ॰—परलोकगमन, परलोकप्राप्ति, परलोकयान, परलोकवास = मृत्यु । मौत । परलोकवासी = मृत । मरा । हुआ ( आदरार्थ) । मुहा॰—परलोकगामी होना = मरना । परलोक बनाना = मरने के बाद अच्छा लोक प्राप्त करना । सदगति होना । परलोक बिगड़ना = मृत्यु के अनंतर अच्छे लोक का न मिलना । परलोक सँवारना = जीवन में उस प्रकर के काम करना जिससे मृत्यु के अनंतर अच्छे लोकप्राप्ति की संभावना हो । उ॰—पाइ न जेहि परलोक सँवारा ।-मानस, ७ ।२७ । परलोक सिधारना = मरना ।

२. मृत्यु के उपरांत आत्मा की दूसरी स्थिति की प्राप्ति । जैसे, जो ईश्वर और परलोक में विश्वास नहीं करते वे नास्तिक कहलाते हैं । (शब्द॰) ।