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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

परमारथ की जानि आप अपने सुपास बास दियो हैं ।— तुलसी (शब्द॰) ।

परमारथ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ परमार्थ] दे॰ 'परमार्थ' । उ॰— परमारथ स्वारथ सुख सारे । भरत न सपनेहुँ मनहुँ निहारे ।—मानस, २ ।२८८ ।