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संज्ञा

  1. एक कण जिसे छोटे कणों में विभाजित न किया जा सके।

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

परमाणु संज्ञा पुं॰ [सं॰] अत्यंत सूक्ष्म अणु । पृथ्वी, जल, तेज और वायु इस चार भूतों का वह छोटे से छोटा भाग जिसके फिर विभाग नहीं हो सकते । विशेष—वैशेषिक में चार भूतों के चार तरह के परमाणु माने हैं—पृथ्वी परमाणु, जल परमाणु, तेज परमाणु और वायु- परमाणु । पाँचवाँ भूत आकाश विभु है । इससे उसके टुकड़े नहीं हो सकते । परमाणु इसलिये मानने पड़े हैं कि जितने पदार्थ देखने में आते हैं सब छोटे छोटे टुकड़ों से बने हैं । इन टुकड़ों में से किसी एक को लेकर हम बराबर टुकड़े करते जायँ तो अंत में ऐसे टुकड़े होंगे जो हमें दिखाई न पड़ेंगे । किसी छेद से आती हुई सूर्य की किरणों में जो छोटे छोटे कण दिखाई पड़ते हैं उनके टुकड़े करने से अणु होंगे । ये अणु भी जिन सूक्ष्मतिसूक्ष्म कणों से मिलकर बने होंगे उन्ही ं का नाम परमाणु रखा गया है । न्याय और वैशेषिक के मत से इन्हीं परमाणुओं के संयोग से पृथ्वी आदि द्रव्यों की उत्पत्ति हुई है जिसका क्रम प्रशस्तपाद भाष्य में इस प्रकार लिखा गाय हैं । जब जीवों के कर्मकल के भोग का समय आता है तब महेश्वर की उस भोग के अनुकूल सृष्टि करने की इच्छा होती है । इस इच्छा के अनुसार जीवों के अद्दष्ट के बल से वायु पर- माणुओं में चलन उत्पन्न होता है । इस चलन से उन पर- माणुओं में परस्पर संयोग होता है । दो दो परमाणुओं के मिलने से 'द्वयणुक' उत्पन्न होते हैं । तीन द्वयणुक मिलने से 'त्रसरेणु' । चार द्वयणुक मिलने से 'चतुरणुक' इत्यादि उत्पन्न हो जाते हैं । इस प्रकार एक महान् वायु उत्पन्न होता है । उसी वायु में जल परमाणुओं के परस्पर संयोग से जलद्वयणुक जलत्रसेरणु आदि की योजना होते होते महान् जलनिधि उत्पन्न होता है । इस जलनिधि में पृथ्वी परमाणुओं के संयोग से द्वयणुकादी क्रम से महापृथ्वी उत्पन्न होती है । उसी जलनिधि में तेजस् परमाणुओं के परस्पर संयोग से महान् तेजोराशि की उत्पत्ति होती है । इसी क्रम से चारो महाभूत उत्पन्न होते हैं । यही संक्षेप में वैशेषिकों का परमाणुवाद है । परमाणु अत्यंत सूक्ष्म और केवल अनुमेय है । अतः 'तर्कामृत' नाम के एक नवीन ग्रंथ में जो यह लिखा गया है कि सूर्य की आती हुई किरणों की बीच जो धूल के कण दिखाई पड़ते हैं उनके छठे भाग को परमाणु कहते हैं, वह प्रामाणिक नहीं है । वैशेषिकों का सिद्धांत है कि कारण गुणपूर्वक ही कार्य के गुण होते हैं, अतः जैसे गुण परमाणु में होंगे वैसे ही गुण उनसे बनी हुई वस्तुओं में होगे । जैसे, गंध, गुरुत्व आदि जिस प्रकार पृथ्वी परमाणु में रहते हैं उसी प्रकार सब पार्थिव वस्तुओं में होते हैं । आधुनिक रसायन और भौतिक वा भूत विज्ञान द्वारा प्राचीनों की मूलभूत और परमाणुसंबंधी धारणा का बहुत कुछ निराकरण हो गया है । प्राचीन लोग पंचमहाभूत मानते थे, जिनमें से आकाश को छोड़ शेष चार भूतों के अनुसार चार प्रकार के परमाणु भी उन्हें मानने पड़े थे । पर इन चार भूतों में से अब तीन तो कई मूल भूतों के योग से बने पाए गए हैं । जैसे, जल दो गैसों (वायु से भी सूक्ष्म भूत) के योग से बना सिद्ध हुआ । वायु का संयेग से ही जल बना ये भी प्राचीन ऋषी २.२.५ वै कहा गया हे। इसी प्रकार वायु में भी भिन्न गैसो का संयोग विश्लेषण द्वारा पाया गया । रहा तेज, उसे विज्ञान भूत नहीं मानता केवल भूत की शक्ति (गति शक्ति) का एक रूप मानता है । ताप से परिमाण (तौल) की वृद्धि नहीं होती । ठढें लोहे का जो वजन रहेगा वही उसे तपाने पर भी रहेगा । किन्तु ताप का रुप स्वभावीक हे और स्पर्श वायु का संयोग से ही होता हे जैसे प्राचीन २.१.४ वै मे हे। अस्तु, आधुनिक रसायन- शास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमें से कुछ तो धातुएँ हैं जैसे ताँबा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, राँगा, जस्ता; कुछ और खनिज हैं, जैसे, गंधक, फासफरस, पोटासियम, अंजन, पारा, हड़ताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, आक्सीजन, नाइट्रोजन, गाइड्रोजन आदि । इन्हीं मूल भूतों के अनुसार परमाणु आधुनिक रसायन में माने जाते हैं । पहले समझा जाता था कि ये अविभाज्य हैं । अब इनके भी टुकड़े कर दिए गए हैं ।