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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

पता ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ प्रत्यय, प्रा॰ पत्तअ (= ख्याति), या सं॰ प्रत्यायक, प्रा॰ प्त्ताअअ > पताअ > हिं॰ पता]

१. किसी विशेष स्थान का ऐसा परिचय जिसके सहारे उस तक पहुँचा अथवा उसकी स्थिति जानी जा सके । किसी वस्तु या व्यक्ति के स्थान का ज्ञान करानेवाली वस्तु, नाम या लक्षण आदि । किसी का स्थान सूचित करनेवाली बात जिससे उसको पा सकें । किसी का अथवा किसी के स्थान का नाम और स्थिति परिचय जैसे,—(क) आप अपने मकान का पता बतावें तब तो कौई वहाँ आवे । (ख) आपका वर्तमान पता क्या है । क्रि॰ प्र॰—जानना ।—देना ।—बताना ।—पूछना । यौ॰—पता ठिकाना = किसी वस्तु का स्थान और उसका परिचय ।

२. चिट्टी की पीठ पर लिखा हुआ वह लेख जिससे वह अभीष्ट स्थान को पहुँच जाती है । चिट्ठी की पीठ पर लिखी हुई पते की इबारत । क्रि॰ प्र॰—लिखना ।

३. खोज । अनुसंधान । सुराग । टोह । जैसे,—आठ रोज से उसका लड़का गायब है, अभी तक कुछ भी पता नहीं चला । क्रि॰ प्र॰—चलना ।—देना ।—मिलना ।—लगना ।—लेना । यौ॰—पता निशान = (१) खोज की सामग्री । वे बातें जिनसे किसी के संबंध में कुछ जान सकें । जैसे,—अभी तक हमको अपनी किताब का कुछ भी पता निशान नहीं मिला । (२) अस्तित्वसूचक चिह्न । नामनिशान । जैसे,—अब इस इमारत का पता निशान तक नहीं रह गया ।

४. अभिज्ञता । जानकारी । खबर । जैसे,—आप तो आठ रोज इलाहाबाद रहकर आ रहे हैं, आपको मेरे मुकदमें का अवश्य पता होगा । क्रि॰ प्र॰—चलना ।—होना ।

५. गूढ़ तत्व । रहस्य । भेद । जैसे,—इस मामले का पता पाना बड़ा कठिन है । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पाना । मुहा॰—पते की = भेद प्रकट करनेवाली बात । रहस्य खोलनेवाली बात । रहस्य की कुंजी । जैसे,—वह बहुत पते की कहता है । पते की बात = भेद प्रकट करनेवाली बात । रहस्य खोलनेवाला कथन ।

पता ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पत्र] दे॰ 'पत्ता' । उ॰—(क) मंजु वंजुल की लता और नील निचुल के निकुंज जिनके पता ऐसे सधन जो सूर्य की किरनों को भी नहीं निकलने देते ।—श्यामा॰, पृ॰ ४२ । (ख) आनँदघन ब्रजजीवन जेंवत हिलिमिलि ग्वार तोरि पतानि ढाक ।—घनानंद, पृ॰ ४७३ ।