पटना
नामवाचक संज्ञा
यह भी देखें
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
पटना ^१ क्रि॰ अ॰ [हिं॰ पट ( = जमीन के सतह के बराबर)]
१. किसी गड्ढे या नीचे स्थान का भरकर आस पास की सतह के बराबर हो जाना । समतल होना । जैसे,—वह झील अब बिलकुल पट गई है ।
२. किसी स्थान में किसी वस्तु की इतनी आधिकता होना कि उससे शून्य स्थान न दिखाई पड़े । परिपूर्ण होना । जैसे,—रणभूमि मुर्दों से पट गई ।
३. मकान, कुएँ आदि कि ऊपर कच्ची या पक्की छत बनाना ।
४. मकान की दूसरी मँजिल या कोठा उठाया जाना ।
५. सींचा जाना । सेराब होना । जैसे,— वह खेत पट गया ।
६. दो मनुष्यों के विचार, भाव, रुचि या स्वभाव में ऐसी समानता होना जिससे उनमें सहयोगिता या मित्रता हो सके । मन मिलना । बनना । जैसे,—हमारी उनकी कभी नहीं पट सकती ।
७. विचारों, भावों या ठचियों की समानता के कारण मित्रता होना । ऐसी मित्रता होना जिसका कारण मनों का मिल जाना हो । जैसे,—आजकल हमारी उनकी खूब पटती है ।
८. खरीद, बिक्री, लेन देन आदि में उभय पक्ष का मूल्य, सूद, शतों आदि पर सहमत हो जाना । तैं हो जाना । बैठ जाना । जैसे, सौदा पट गया, मामला पट गया, आधि ।
९. (ऋण या देना) चुकता हो जाना । (ऋण) भर जाना । पाई पाई अदा हो जाना । जैसे,—ऋण पट गया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
पटना ^२ संज्ञा पुं [सं॰ पट्टन] दे॰ 'पाटलिपुत्र' ।