निमेष
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादननिमेष संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. पलक का गिरना । आँख का झपकना । उ॰—(क) कहा करौं नीके करि हरि को रूप रेख नहिं पावति । संगहि संग फिरति निसि बासर नैन निमेष न लावति ।—सूर (शब्द॰) । (ख) मो डर ते डरपै सुरराजहु सोवत नैन लगाय निमेषै ।—हनुमान (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—लगाना ।
२. पलक मारने भर का समय । पलक के स्वभावतः उठने और गिरने के बीच का काल । उतना वक्त जितना पलकों के उठकर फिर गिरने में लगता है । पल । क्षण ।
३. आँख का एक रोग जिसमें आँखें फड़कती है ।
४. एक यक्ष का नाम (महाभारत) । यौ॰—निमेषद्युत्, निमेषरुच् = जुगनू ।