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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

नाराच संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. लोहे का बाण । वह तीर जो सारा लोहे का हो । विशेष—शर में चार पंख लगे रहते हैं और नाराच में पाँच । इसका चलाना बहुत कठिन है ।

२. वाण । तीर ।

३. दुर्दिन । ऐसा दिन जिसमें बादल घिरा हो, अंघड़ चले और इसी प्रकार के और उपद्रव हों ।

४. एक वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण और चार रगण होते हैं । इसे 'महामालिनी' और 'तारका' भी कहते हैं ।

५. २४ मात्राओं का एक छंद । जैसे,—तवै ससैन काल जीत बाल तीर जाय कै ।

६. जलहस्ती (को॰) ।

७. एक प्रकार का घृत (वैद्यक) ।