नाच
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादननाच संज्ञा पुं॰ [सं॰ नृत्य, प्रा॰ णच्य, नच्च]
१. वह उछल कूद जो चित्त की उमंग से हो । अंगों की वह गति जो हृदयोल्लास के कारण मनमानी अथवा संगीत के मेल में ताल स्वर के अनुसार और हावभाव युक्त हो । उ॰— करि सिंगार मनमोहनि पातुर नाचहिं पाँच । बादशाह गढ़ छेंका, राजा भूला नाच ।— जायसी (शब्द॰) । विशेष— नाच की प्रथा सभ्य असभ्य सब जातियों में आदि से ही चली आ रही हैं, क्योंकि यह एक स्वाभाविक वृत्ति है । संगीतदामोदर में नृत्य का यह लक्षण है— देश की रुचि के अनुसार ताल मान और रस का आश्रित जो अंगविक्षेप हो उसे नृत्य कहते हैं । नृत्य दो प्रकार का होता है— तांडव और लास्य । पुरुष के नाच को तांडव और स्त्री के नाच को लास्य कहते हैं । ताडंव के दो भेद हैं— पेलवि और वहुरुप । अभिनयशून्य अंगविक्षेप को पेलवि और अनेक प्रकार कै हावभाव, वेशभूषा से युक्त अंग-गति को बहुरूप कहते हैं । लास्य के भी दो भेद हैं— छुरित और यौवत । नायक नायिका परस्पर आलिंगन, चुंबन आदि पूर्वक जो नृत्य करते हैं उसे छुरित कहते हैं । एक स्त्री लीला और हावभाव के साथ जो नाच नाचती है उसे यौवत कहते हैं । इनके अतिरिक्त अंग प्रत्यंग की चेष्टा के अनुसार ग्रंथों में अनेक भेद किए गए हैं । पर प्राचीन काल में नृत्य विद्या राजकुमार भी सीखते थे । अर्जुन इस विद्या में निपुण थे । भारतवर्ष में नाचने का पेशा करनेवाले पुरुषों को नट कहते थे । स्मृतियों में नट निकृष्ट जातियों में रखे गए हैं । नाचना अनेक प्रकार के स्वाँगों के साथ भी होता हैं, जैसे, नाटक, रासलीला आदि में । विशेष दे॰ 'नाटक' । क्रि॰ प्र॰—करना, नाचना, होना । यौ॰— नाचकूद । नाच तमाशा । नाच रंग । मुहा॰— नाच काछना= नाचने के लिये तैयार होना । उ॰— मैं अपनो मन हरि सों जोरयो । नाच कछयो घूँघट छोरयो तब लोकलाज सब फटकि पछोरयो ।— सूर (शब्द॰) । नाच दिखाना = (१) किसी के सामने नाचना । (२) उछलना कूदना । हाथ पैर हिलाना । (३) विलक्षण आचरण करना । जैसे, रास्ते में उसने बडे़ बडे़ नाच दिखाए । नाच नचाना = (१) जैसा चाहना वैसा काम कराना । उ॰— (क) कबिरा बैरी सबल है एक जीब रिपु पाँच । अपने अपने स्वाद को बहुत नचावै नाच ।— कबीर (शब्द॰) । (ख) जो कछु कुबजा के मन भावै सोई नाच नचावै ।— सूर (शब्द॰) । (२) दिक करना । हैरान करना । तंग करना । उ॰— जहँ कहुँ फिरत निसाचर पावहिं । घेरि सकल बहु नाच नचावहिं । तुलसी (शब्द॰) ।
२. नाट्य । खेल । क्रीड़ा । उ॰— टूटे नौ मन मोती कूटे दस मन काँच । लिय समेटि सब अभरन होइगा दुख कर नाच ।— जायसी (शब्द॰) ।
३. कृत्य । धधा । कर्म । प्रयत्न । उ॰— साँच कहौं नाच कौन सो जो न मोहिं लोभ लघु निलज नचायो ।— तलुसी (शब्द॰) ।