नाक

संज्ञा

अर्थ

  • नाक रीढ़धारी प्राणियों में पाया जाने वाला छिद्र है। इससे हवा शरीर में प्रवेश करती है

अनुवाद

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

नाक ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ नक, पा॰ नक्क,]

१. मुखमंडल की मांस- पोशियों और अस्थियों के उभार से बना हुआ लन के रूप का वह अवयव जिसके दोनों छेद मुखविवर और फुस्फुस से मिले रहते हैं और जिससे घ्राण का अनुभव और श्वास प्रश्वास का व्यापार होता है । सूँघने और साँस लेने की इंद्रिय । नासा । नासिका । विशेष—नाक का भीतरी अस्तर छिद्रमय मांस की झिल्ली का होता है जो बाराबर कपालधट और नेत्र के गोलकों तक गई, रहती है, इसी झिल्ली तक मस्तिष्क के वे संवेदनसूत्र आए रहते हैं जिनसे घ्राण का व्यापार अर्थात् गंध का अनुभव होता है । इसी से होकर वायु भीतर जाती है जिसमें गंधवाले अणु रहते हैं । इस झिल्ली का ऊपरवाला भाग ही गंधवाहक होता है, नीचे का नहीं । नीचे तक संवेदनसूत्र नहीं रहते । नासारंध्र का मुखविवर, नेत्रगोलक, कवालघट आदि से संबंध होने के कारण नाक से स्वर और स्वाद का भी बहुत कुछ साधन होता है तथा कपाल के भीतर कोशों में इकट्ठा होनेवाला मल और आँख का आँसू भी निकलता है । जीबविज्ञानियों का कहना है कि उठी हुई नाक मनुष्य की उन्नत जातियों का चिह्न है, हबशी आदि असभ्य जातियों की नाक बहुत चिपटी होती है । यौ॰—नाक का बाँसा = दोनों नथुनों के बीच का परदा । नाक धिसनी = बिनती और गिड़गिडा़हट । नाककटी या नाक- कटाई = अप्रतिष्ठा । बेइज्जती । नाकबंद = घोडे़ की पूजी । मुहा॰—नाक कटना = प्रतिष्ठा नष्ट होना । इज्जत जाना । नाक कटाना = प्रतिष्ठा नष्ट करना । इज्जत बिगड़वाना । नाक काटना = प्रतिष्ठा नष्ट करना । इज्जत विगाड़ना । नाक काटकर चूतड़ों तले रख लेना = लोक लज्जा छोड़ देना । निलंज्ज हो जाना । अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान छोड़ लज्जाजनक कार्य करना । बेहयाई करना । नाक कान काटना = कडा़ दंड देना । नाक का बाँसा फिर जाना = नाक का बाँसा टेढा़ हो जाना जो मरने का लक्षण समझा जाता है । (किसी की) नाक का बाल = वह जिसका किसी पर बहुत अधिक प्रभाव हो । सदा साथ रहनेवाला घनिष्ट मित्र या मंत्री । वह जिसकी सलाह से सब काम हो । नाक की सीध में = ठीक सामने । बिना इधर उधर मुडे़ । नाक धिसना = दे॰ 'नाक रगड़ना' । नाक चढ़ना = क्रोध आना । त्योरी चढ़ना । नाक चढा़ना = (१) क्रोध से नथुने फुलाना । क्रोध की आकृति प्रकट करना । क्रोध करना । (२) धिन खाना । घृणा प्रकट करना अरुचि दिखाना । नापसंद करना । तुच्छ समझना । नाकों चने चबवाना = खूब तंग करना । हैरान करना । नाक चोटी काट कर हाथ देना = (१) कठिन दंड देना । (२) दुर्दशा करना । अपमान करना । नाक चोटी काटना = क़डा दंड देना । नाक तक खाना = बहुत ठूँसकर खाना । बहुत अधिक खाना । नाक तक भरना = (१) मुँह तक भरना (बरतन आदि को) । (२) खूब ठूँसकर खाना । बहुत अधिक खाना । नाक न दी जाना = बहुत दुर्गंध आना । बहुत बदबू मालूम होना । नाक पर उँगली रखकर बात करना = औरतों की तरह बात करना । नाक पकड़ते दम निकलना = इतना दुर्बल रहना कि छू जाने से भी मरने का डर हो । बहुत अशक्त होना । नाक पर गुस्सा होना = बात बात पर क्रोध आना । चिड़चिडा़ स्वभाव होना । (कोई वस्तु) नाक पर रख देना = तुरंत सामने रख देना । चट दे देना । (जब कोई अपने रुपए या और किसी वस्तु को कुछ बिगड़कर माँगता है तब उसके उत्तर में ताव के साथ लोग ऐसा कहते हैं) । नाक पर दीया बालकर आना = सफलता प्राप्त करके आना । मुख उज्वल करे आना ।—(स्त्री॰) । चाहे इधर से नाक पकड़ो चाहे उधर से = चाहे जिस तरह कहो या करो बात एक ही है । नाक पर पहिया फिर जाना = नाक चिपनी होना । नाक इधर कि नाक उधर = हर तरह से एक ही मतलब । नाक पर मक्खी नो बैठने देना = (१) बहुत ही खरी प्रकृति का होना । थोडा़ सा भी दोष या त्रुटि न सह सकना । (२) बहुत साफ रहना । जरा सा दाग न लगने देना । (३) किसी का थोडा़ निहोरा भी न लेना । जरा सा एहसान भी न उठाना । (किसी की) नाक पर सुपारी तोड़ना = खूब तंग करना । नाक फटने लगना = असह्य दुर्गंध होना । नाक बैठना = नाक का चिपटा हो जाना । नाक बहना = नाक में से कपाल- कोशों का मल निकलना । नाक बीधना = नथनी आदि पहनाने के लिय नाक में छेद करना । नाक भौं चढा़ना या नाक भौं सिकोड़ना = (१) अरुचि और अप्रसन्नता प्रकट करना । (२) घिनान और चिढ़ना । नापसंद करना । नाक में दम करना या नाक में दम लाना = खूब तंग करना । बहुत हैरान करना । बहुत सताना । नाक मारना = घृणा प्रकट करना । घिन करना । नापसंद करना । नाक में तीर करना या नाक में तीर डालना = खूब तंग करना । बहुत सताना या हैरान करना । नाक में तीर होना = बहुत हैरान होना । बहुत सताया जाना । नाक रगड़ना = बहुत गिड़गिडा़ना और विनती करना । मिन्नत करना । नाक रगडे़ का बच्चा = वह बच्चा जो देवताओं की बहुत मनौती पर हुआ हो । नाकों आना = हैरान हो जाना । बहुत तंग होना । उ॰— नाक बनावत आयो हौं नाकहि नाही घिनाकिहि नेकु निहरो ।—तुलसी (शब्द॰) । नाक में बोलना = नासिका से स्वर निकालना । नकियाना । नाक लगाकर बैठना = बहुत प्रतिष्ठा पाना । बनकर बैठना । बडा़ इज्जतवाला बनना । नाक सिकोड़ना = अरुचि या घृणा प्रकट करना । घिनाना । उ॰—सुनि अघ नरकहु नाक सिकोरी ।— तुलसी (शब्द॰) ।

२. कपाल के कोशों आदि का मल जो नाक से निकलता है । रेंट । नेटा । क्रि॰ प्र॰—आना ।—बहना । यौ॰—नाक सिनकना = जोर से हवा निकालकर नाक का मल बाहर फेंकना ।

३. चरखे में लगी हुई एक चिपटी लंकडी़ जो अगले खूँटे के आगे निकले हुए बेलन के सिरे पर लगी रहती है और जिसे पकड़कर चरखा घुमाते हैं ।

४. लकडी़ का वह डंडा जिसपर चढा़कर बरतन खरादे जाते हैं । ५, प्रतिष्ठा की वस्तु । श्रेष्ठ बा प्रधान वस्तु । शोभा की वस्तु । जैसे,—वे ही तो इस शहर की नाक हैं ।

६. प्रतिष्ठा । इज्जत । मान । उ॰—नाक पिनाकहि संग सिधाई ।—तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—नाकवाला = इज्जतवाला । मुहा॰—नाक रख लेना = प्रतिष्ठा की रक्षा कर लेना ।

नाक ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ नक्र] मगर की जाति का एक जलजंतु । विशेष—मगर से इसमें यह अंतर होता है कि यह उतनी लंवी नहीं होती, पर चौडी़ अधिक होती हैं । मुँह भी इसका अधिक चिपटा होता है और उसपर घडा़ या थूथन नहीं होता । पूँछ में काँटे स्पष्ट नहीं होते । यह जमीन पर मगर से अधिक दूर तक जाकर जानवरों को खींच ला सकती है । सरजू तथा उसमें मिलनेवाली और छोटी छोटी नदियों में यह बहुत पाई जाती है ।

नाक ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. स्वर्ग । यौ॰—नाकनटी । नाकपती ।

२. अंतरिक्ष । आकाश ।

३. अस्त्र का एक आघात ।

४. सूर्य (को॰) ।

नाक ^४ वि॰ [सं॰ न + अकम् ( = दुःख] कष्टहीन । प्रसन्न । सुखी [को॰] ।