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संज्ञा

नदी स्त्री॰

उच्चारण

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अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

 
नदी

शब्दसागर

नदी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. जल का वह प्राकृतिक और भारी प्रवाह जो किसी बड़े पर्वत या जलाशय आदि से निकलकर किसी निश्चित मार्ग से होता हुआ प्रायः बारहों महीने बहता रहता हो । दरिया । विशेष—(क) पहाड़ों पर बरफ के गलने या वर्षा होने के कारण जो पानी एकत्र होता है वह गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के अनुसार नीचे की ओर ढलता और मैदानों में से होता हुआ प्रायः समुद्र तक पहुँचता है । कभी यह पानी अपनी स्वतंत्र धारा में समुद्र तक पहुँचता है और कभी समुद्र तक जानेवाली किसी दूसरी बड़ी धारा में मिल जाता है । जो धारा सीधी समुद्र तक पहुँचती है वह भौगोलिक परिभाषा में मुख्य नदी कहलाती है और जो दूसरी धारा में मिल जाती है वह सहायक नदी कहलाती है । ऐसा भी होता है कि नदी या तो जाकर किसी झील में मिल जाती है और या किसी रेतीले मैदान आदि में लुप्त हो जाती है जिस स्थान से नदी का आरंभ होता है उसे उसका उदगम कहते हैं, जिस स्थान पर वह किसी दूसरी नदी से मिलती है उसे संगम कहते हैं और जिस स्थान पर वह समुद्र में मिलती है उसे मुहाना कहते हैं । नदी जिस मार्ग से बहती है वह मार्ग गति कहलाता है और उसके बहाव के कारण जमीन में जो गड्ढा बन जाता है गर्भ कहलाता है । साधारणतः नदियाँ बारहों महीने बहती रहती है, पर छोटी नदियाँ गरमी के दिनों में बिलकुल सूख जाती हैं । वर्षा में प्रायः सभी नदियों का जल बहुत अधिक बढ़ जाता है क्योंकि उन दिनों आस पास के प्रांत का वर्षा का जल भी आकर उनमें मिल जाता है । उससे उसका पानी बहुत अधिक मटमैला भी होता है । (ख) 'नदी' वाचक शब्द से ईश, नाथ, प, पति, वर इत्यादि 'पति' वाची शब्द या प्रत्यग लगाने से वह 'समुद्र' वाची शब्द हो जाता है । जैसे, नदीश, सरित्पति, अपगानाथ, तटिनीवर इत्यादि । पर्या॰—सरि । सरिता । आपगा । तरंगिणी । शैवलिनी । तटिनी । ह्रदिनी । धुनी । स्त्रोतस्वती । स्रवंती । निम्नगा । निर्झरणी । सरस्वनी । समुद्रगा । कूलवती । कूलंकषा । कल्लोलिनी । स्रोतास्विनी । ऋषिकुल्या । स्रोतेवहा । यौ॰—नदीश = समुद्र । मुहा॰—नदी नाव संयोग = ऐसा संयोग जो बार बार न हो, कभी एक बार इत्तिफाक हो जाय ।

२. किसी तरल पदार्थ का बड़ा प्रवाह । जैसे,—रक्त की नदी बह निकली ।

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