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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

नकसीर संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ नाक + सं॰ क्षीर ( = जल)] आपसे आप नाक से रक्त बहना जो प्रायः गरमी दिनों में होता है । विशेष—वैद्यक में इसे रक्तपित्त रोग के अंतर्गत माना है । रक्तपित्त में मुँह, नाक आँख, कान, गुदा और योनि या लिंग से रक्त बहता है । यदि यह रक्त अधिक मात्रा में बहें तो मनुष्य थोड़ी ही देर में मर भी सकता है । अधिक आँच या धूप लगने, रास्ता चलने और शोक, व्यायाम या मैथुन करने से भिन्न भिन्न मार्गो से रक्त बहने लगता है । स्त्रियों का रज रुक जाने से भी यह रोग हो जाता है । विशेष—दे॰'रक्तरपित्त' । क्रि॰ प्र॰—फूटना । मुहा॰—नकसीर भी न फूटना = कुछ भी हानि न पहुँचना । जरा भी तकलीफ या नुकसान न होना ।