प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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धनाश्री संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] एक रागिनी जो हनुमान् के मत से श्री राग की तीसरी पत्नी मानी जाती है । विशेष—इसकी जाति षाड़व, ऋषभ वर्जित गृहांशन्यास षड़ज है । गाने का समय किसी किसी के मत से दिन का दूसरा पहर और किसी के मत से तीसरा पहर है । इसका प्रयोग वीर रस में विशेष होता है । इसका सरगम इस प्रकार है— स । ग । म । प । ध । नि । स । भरत के मत से यह गांधार राग की भार्या और कल्लिनाथ के मत से मेघराग की चतुर्थ भार्या है ।