प्रकाशितकोशों से अर्थ

सम्पादन

शब्दसागर

सम्पादन

धड़ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ धर(=धारण करनेवाला)]

१. शरीर का स्थूल मघ्य भाग जिसके अंतर्गत छाती, पीठ और पेट होते हैं । सिर और हाथ पैर (तथा पशु पक्षियों में पूँछ और पंख) को छोड़ शरीर का बाकी भाग । सिर और हाथों को छोड़ कटि के ऊपर का भाग । उ॰—धड़ सूली सिर कंगुरे, तउ न बिसारूँ तुज्झ ।—संतवाणी॰, पृ॰ ३९ । यौ॰—धड़टूटा । मुहा॰—धड़ में डालना या उतारना = पेट में डालना । खा जाना । (किसी का) धड़ रह जाना = शरीर स्तब्ध हो जाना । देह सुन्न हो जाना । लकवा मार जाना । धड़ से सिर अलग करना = सिर काट लेना । मार डालना ।

२. पेड़ का वह सब मोटा कड़ा भाग जो जड़ से कुछ दूर ऊपर तक रहता है और जिससे निकलकर डालियाँ इधर उधर फैली रहती हैं । पेड़ी । तना ।

धड़ ^२ संज्ञा स्त्री॰ [अनु॰] वह शब्द जो किसी वस्तु के एकबारगी गिरने, वेग से गमन करने आदि से होता है । जैसे,—(क) वह धड़ से नीचे गिरा । (ख) गाड़ी धड़ से निकल गई । यौ॰—धड़ धड़ । विशेष—'खट' 'पट' आदि अनु॰ शब्दों के समान प्रायः इस शब्द का प्रयोग भी 'से' विभाक्ति के साथ क्रि॰ वि॰ वत् ही होता है ।