प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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द्विगु ^१ वि॰ [सं॰] जिसे दो गाएँ हों ।

द्विगु ^२ संज्ञा पुं॰ वह कर्मधारय समास जिसका पूर्वपद संख्या- वाचक हो । विशेष— यह समास तीन प्रकार का होता है—तद्धितार्थ, जैसे— पंचगु अर्थात् जिसे पाँच गो देकर मोल लिया हो; उत्तरपद, जैसे,— पंचकोण अर्थात् जिसमें पाँच कोण हों; और समा- हार, जैसे, त्रिलोकी, अर्थात् तीनो लोक, त्रिभुवन । पाणिनि ने इस समास को कर्मधारय के अंतर्गत रखा है पर और वैयाकरण इसे एक स्वतंत्र सनाम मानते हैं ।