प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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द्वापर संज्ञा पुं॰ [सं॰] बारह युगों में तीसरा युग । पुराणों में यह युग ८, ६४, ॰॰० वर्ष का माना गया है । विशेष— भादों की कृष्ण त्रयोदशी बृहस्पतिवार को इस युग की उत्पत्ति मानी गई है । मत्स्यपुराण के अनुसार द्वापर लगते ही धर्म आदि में घटती आरंभ हुई । जिनके करने से त्रेता में पाप नहीं लगता था वे सब कर्म पाप समझे जाने लगे । प्रजा लोभी हो चली । अज्ञान के कारण श्रुति स्पृति आदि का यथार्थ बोध लुप्त होने लगा । नाना प्रकार के भाष्य आदि बनने और मतभेद चलने लगे । उक्त पुराण के अनुसार द्वापर में मनुष्यों की परमायु दो हजार वर्ष की थी ।