प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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दृष्टि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. देखने की वृत्ति या शक्ति । आँख की ज्योति । मुहा॰—दृष्टि मारी जाना = देखने की शक्ति न रह जाना ।

२. देखने के लिये नेत्रों की प्रवृत्ति । देखने के लिये आँख की पुतली के किसी वस्तु के सीध में होने की स्थिति । टक । दृकपात । अवलोकन । नजर । निगाह । क्रि॰ प्र॰—डालना । मुहा॰—दृष्टि करना = दृष्टि डालना । ताकना । दृष्टि चलाना = नजर डालना । दृष्टि चूकना = नजर का इधर उधर हो जाना । आँख का दूसरी ओर फिर जाना । जैसे,—जहाँ चूकी गिरे । दृष्टि देना = नजर डालना । ताकना । दृष्टि फिरना = (१) नेत्रों का दूसरी ओर प्रवृत्त होना । आँख का दूसरी ओर हो जाना । (२) कृपादृष्टि न रहना । हित का ध्यान या प्रीति न रहना । चित अप्रसन्न या खिन्न होना । दृष्टि फेंकना = नजर डालना । ताकना । दृष्टि फेरना = नजर हटा लेना । दूसरी ओर देखना । (किसी ओर) ताकते न रहना । (किसी से) दृष्टि फेरना = (किसी पर) कृपादृष्टि न रखना । अप्रसन्न या विरक्त होना । खिन्न होना । (किसी की) दृष्टि बचाना = (१) सामने होने से बचना । किसी के आँख के सामने न आना । जान बूझकर दिखाई न पड़ना । (भय, लज्जा आदि के कारण) । (२) (किसी से) छिपाना । न दिखाना । दृष्टि बाँधना = इस प्रकार का जादू करना कि आँखों को और का और दिखाई पड़े । इंद्रजाल फैलाना । दृष्टि लगाना = (१) स्थिर होकर ताकना । टकटकी बाँधना । (२) (किसी ओर देखने के लिये) आँख ले जाना । ताकना । उ॰—दसै दुवार का लेखा । उलटि दृष्टि जो लाव सो देखा ।—जायसी (शब्द॰) ।

३. आँख की ज्योति का प्रसार जिससे वस्तुओं के अस्तित्व, रूप, रंग आदि का बोध होता है । दृक्फत । मुहा॰—दृष्टि आना = दे॰ 'दृष्टि में आना' । दृष्टि पड़ना = दिखाई पड़ना । उ॰—(क) दृष्टि परी इंद्रासन पुरी ।— जायसी (शब्द॰) ।—(ख) मेरी दृष्टि परे जा दिन तें ज्ञान मान हरि लीनो री ।—सूर (शब्द॰) । दृष्टि पर चढ़ना = (१) देखने में बहुत अच्छा लगना । निगाह में जँचना । अच्छा लगने के कारण ध्यान में सदा बना रहना । पसंद आना । भाना । जैसे,—वह छड़ी तुम्हारी दृष्टि पर चढ़ी हुई है । (२) आँखों में खटकना । किसी वस्तु का इतना बुरा लगना कि उसका ध्यान सदा बना रहे । जैसे,—तुम उसकी दृष्टि पर चढ़े हुए हो, वह तुम्हें बिना मारे न छोड़ेगा । दृष्टि बिछाना = (१) प्रेम या श्रद्धावश किसी के आसरे में लगातार ताकते रहना । उत्कंठापूर्वक किसी के आगमन की प्रतीक्षा करना । उ॰—पवन स्वास तातों मन लाई । जोवै मारग दृष्टि बिछाई ।—जायसी (शब्द॰) । (२) किसी के आने पर अत्यंतं श्रद्धा या प्रेम प्रकट करना । दृष्टि में आना = देखने में आना । दिखाई पड़ना । उ॰—जग कोउ दृष्टि न आवै पूरन होय सकाम ।—जायसी (शब्द॰) । दृष्टि में पड़ना दिखाई पड़ना (क्व॰) । दृष्टि से उतरना या गिरना = श्रद्धा, विश्वास या प्रेम का पात्र न रहना । (किसी के) विचार में अच्छा न रह जाना । तुच्छ या बुरा ठहरना ।

४. देखने में बहुत नेत्र । देखने के लिये खुली हुई आँख । मुहा॰—दृष्टि उठाना = ताकने के लिये आँख ऊपर करना । दृष्टि गड़ाना या जमाना = दृष्टि स्थिर करना । एकटक ताकना । (किसी से) दृष्टि चुराना = (लज्जा या भय से) सामने न आना । जान बूझकर दिखाई न पड़ना । नजर बचाना । (किसी से) दृष्टि जुड़ना = आँख मिलना । देख देखी होना । साक्षात्कार होना । (किसी से) दृष्टि जोड़ना = आँख मिलाना । देखादेखी करना । साक्षात्कार करना । दृष्टि फिसलना = चमक दमक के कारण नजर न ठहरना । आँख में चकाचौंध होना । दृष्टि भर देखना = जितनी देर तक इच्छा हो उतनी ही देर तक देखना । जी भर कर ताकना । उ॰—करु मन नंदनंदन ध्यान । सेइ चरन सरोज सीतल तजु विषय रसपान । सूर श्री गोपाल की छवि दृष्टि भरि लखि लेहि । प्रानपति की निरखि शोभा पलक परन न देहि ।—सूर (शब्द॰) । दृष्टि मारना = (१) आँख से इशारा करना । पलक गिराकर संकेत करना । (२) आँख के इशारे से रोकना । दृष्टि मिलना = नजर में जँचना । अच्छा लगने के कारण ध्यान में बना रहना । भाना । उ॰—वह सभों की दृष्टि में समा गया ।—बेनिस का बाँका (शब्द॰) । दृष्टि मिलना = दे॰ 'दृष्टि जोड़ना' । उ॰—विहरत हिया करहु पिय टेका । दृष्टि मया करि मिलवहु एका ।—जायसी (शब्द॰) । (किसी वस्त ु पर) दृष्टि रखना = किसी वस्तु को देखते रहना जिससे वह इधर उधर न हो जाय निगरानी रखना । (किसी पर) दृष्टि रखना = देख रेख में रखना । चौकसी में रखना । दशा का निरीक्षण करते रहना । जैसे,—इस लड़के पर भी दृष्टि रखना, इधर उधर खेलने न पावे । दृष्टि लगना = (१) नजर पड़ना । दृष्टिपात होना । (२) देखा देखी होने से प्रेम होना । प्रीति होना । दृष्टि लगाना = (१) स्थिर होकर ताकना । टकटकी बाँधना । उ॰—भूलि चकोर दृष्टि जो लावा । मेघ घटा मद चंब दिखावा ।—जायसी (शब्द॰) । (२) किसी ओर देखने के लिये आँख ले जाना । ताकना । (३) प्रेम करना । प्रीति करना । (४) नजर लगाना । बुरी दृष्टि का प्रभाव डालना । (किसी से) दृष्टि खड़ना = (१) (किसी की) आँख के सामने आँख होना । धूरा धूरी होना । देखादेखी होना । (२) प्रेम होना । (किसी से) दृष्टि लड़ाना = आँख के सामने आँख किए रहना । घूरना । खूब ताकना । देर तक आँख से आँख मिलाना ।

५. परख । पहचान । तमीज । अटकल । अंदाज ।

६. कृपा- दृष्टि । हित का ध्यान । मिहरबानी की नजर । जैसे,—आज कल आपकी वह दृष्टि मेरे ऊपर नहीं है । उ॰—(क) तपै बीज जस धरती सुख विरह के घाम । कब सो दृष्टि करि बरसै तन तरुवर होइ जाम ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) बिरवा लाइ न सूखन दीजै ।—जायसी (शब्द॰) ।

७. आशा की दृष्टि । आसरे में लगी हुई टकटकी । आस । उम्मीद ।

८. ध्यान । विचार । अनुमान । जैसे,—मेरी दृष्टि में तो ऐसा करना अनुचित है ।

९. उद्देश्य । अभिप्राय । नीयत । जैसे,—कुछ बुरी दृष्टि से मैंने ऐसा नहीं किया ।