दुहाई
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनदुहाई ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ द्वि॰ (=दो) + आह्वय (=पुकारना)]
१. घोषणा । पुकार । उच्च स्वर से किसी बात की सूचना जो चारों ओर दी जाय । मुनादी । मुहा॰—किसी की दुहाई फिरना = (१) राजा के सिंहासन पर बैठने पर उसके नाम की घोषणा होना । राजा के नाम की सूचना डंके आदि के द्वारा फिरना । उ॰—बैठे राम राजसिंहा- सन जग में फिरी दुहाई । निर्भय राज राम को कहियत सुर नर मुनि सुखदाई ।—सूर (शब्द॰) । (२) प्रताप का डंका पिटना । प्रभुत्व की डौंडी फिरना । विजय घोषणा होना । जयजयकार । उ॰—(क) बिंध, उदयगिरि, धौलागिरी । काँपी सृष्टि दुहाई फिरी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) नगर फिरी रघुबीर दुहाई । तब प्रभु सीतहि बोल पठाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. सहायता के लिये पुकार । बचाव या रक्षा के लिये किसी का नाम लेकर चिल्लाने की क्रिया । सताए जाने पर किसी ऐसे प्रतापी या बड़े का नाम लेकर पुकारना जो बचा सके । उ॰— तब सतगुरू कहे समुझाई । कांहे को तुम देत दुहाई ।—कबीर सा॰, पृ॰ ५५७ । मुहा॰—दुहाई देना = ( संकट या आपत्ति आने पर) रक्षा के लिये पुकारना । अपने बचाव के लिये किसी का नाम लेकर पुकारना । उ॰—(क) हम बचानेवाले कौन हैं, राजा दुष्यंत की दुहाई दे वही बचाएगा क्योंकि तपोवनों की रक्षा राजा के सिर है ।—लक्ष्मणसिंह (शब्द॰) । (ख) किसी ने आकर दुहाई दी कि मेरी गाय चोर लिए जाता हैं ।—शिवप्रसाद (शब्द॰) ।
३. शपथ । कसम । सौगंद । जैसे, रामदुहाई । उ॰—(क) मन माला तन सुमिरनी हरि जी तिलक दियाय । दुहाई राजा राम की दूजा दूर कियाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) अब मन मगन हो रामदुहाई । मन, वच, क्रम हरि नाम हृदय धरि जो गुरुवेद बताई ।—सूर (शब्द॰) । (ग) नाथ सपथ पितु चरन दुहाई । भयउ न भुवन भरत सम भाई ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—खाना । उ॰—आजु ते न जैहौ दधि बेचन, दुहाई खाऊँ मैया की, कन्हैया उत ठाढ़ोई रहत है ।
दुहाई ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ दुहना]
१. गाय, भैंस आदि् को दुहने का काम ।
२. दुहने की मजदूरी ।