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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

दुःख संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. ऐसा अवस्था जिससे छुटकारा पाने की इच्छा प्राणियों में स्वाभाविक हो । कष्ट । क्लेश । सुख का विपरीत भाव । तकलीफ । विशेष— सांख्याशास्त्र के अनुसार दुःख तीन प्रकार के माने गए हैं— आध्यात्मिक, आधिभौतिक और अघिदैविक । अध्यात्मिक दुःख के अंतर्गत रोग, व्याधि आदि शारीरिक दुःख और क्रोध, लोभ आदि मानसिक दुःख हैं । आधिभौतिक दुःख वह है जो स्थावर, जंगम (पशु,पक्षी साँप, मच्छड़ आदि) भूतों के द्वारा पहुँचता है । आधिदैविक जो देवताओं अर्थात् प्राकृतिक शक्तियों के द्वार पहुँचता है, जेसे,—आँधी, वर्षा, बज्रपात, शीत, ताप इत्यादि । साँख्य दुःख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है, आत्मा को उससे अलग रखता है । पर न्याय और वैशेषिक दुःख को आत्मा का धर्म मानते हैं । त्रिविध दुःखों की निवृत्ति को साख्य ने अत्यंत पुरुषार्थ कहा है और शास्त्रजिज्ञासा का उद्देश्य बतलाया है । प्रधान दुःख जरा और मरण है जिनसे लिंगशरीर की निवृत्ति के बिना चेतन या पुरुष छुटकारा नहीं पा सकता है । इस प्रकार की मुक्ति या अत्यंत दुःखनिवृत्ति तत्वज्ञान द्वारा— प्रकृति और पुरुष के भेदज्ञान द्वारा—ही संभव है । वेदांत ने सुखदुःख ज्ञान को अविद्या कहा है । इसकी निवृत्ति ब्रह्माज्ञान द्वारा हो जाती है । योग की परिभाषा में दुःख एक प्रकार का चित्तविक्षेप या अंतराय है जिससे समाधि में विध्न पड़ता है । व्याधि इत्यादि चित्तविक्षेपों के अतिरिक्त योग ने चित्त के राजस कार्य को दुःख कहा हे । किसी विषय से चित्त में जो खेद या कष्ट होता है वही दुःख हे । इसी दुःख सें द्वेष उत्पन्न होता है । जब किसी विषय से चित्त को दुःख होगा होगा तब उससे द्वेष उत्पन्न होगा । योग परिणाम, ताप और संस्कार तीन प्रकार के दुःख मानकर सब वस्तुओं को दुःखमय कहना है । परिणाम दुःख वह है जिसका अन्यथाभाव हो अर्थात् जो भविष्य में अवश्य पहुँचे, ताप दुःख वह है जो वर्तमान काल में कोई भोग रहा हो और जिसका प्रभाव या स्मरण बना हो । क्रि॰ प्र॰—होना । मुहा॰—दुःख उठाना = कष्ट सहना । तकलीफ सहना । ऐसी स्थिति में पड़ना जिससे सुख या शांति न हो । दुःख देना = कष्ट पहुँचाना । दुःख पहुँचना = दुःख होना । दुःख पहुँचाना = दे॰ 'दुःख देना' । दुःख पाना = दे॰ 'दुःख उठाना' । दुःख बटाना = सहानुभूति करना । कष्ट या संकट के समय साथ देना । दुःख भरना = कष्ट या संकट के दिन काटना । दुःख भुगतना या भोगना = दे॰ 'दुःख उठाना' ।

२. संकट । आपति । विपत्ति । मुहा॰— (किसी पर) दुःख पड़ना = आपत्ति आना । संकट उपस्थित होना ।

३. मानसिक कष्ट । खेद । रंद । जैसे,—उसकी बात से मुझे बहुत दुःख हुआ । मुहा॰—दुःख मानना = खिन्न होना । संतप्त । होना । रंजीदा होना । दुःख बिसराना = (१) चित्त से खेद निकालना । शोक या रंज की बात भूलना । (२) जी बहलाना । दुःख लगना = मन मे खेद होना । रंज होना ।

४. पीड़ा । व्यथा । दर्द ।

५. व्याधि । रोग । बीमारी । जैसे,— इन्हें बुरा दुःख लगा है । मुहा॰— दुःख लगाना = रोग घेरना । व्याधि होना ।