प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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दीनार संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. स्वर्णभूषण । सोने का गहना ।

२. निष्क की तौल ।

३. स्वर्णमुद्रा । मोहर । विशेष—दीनार नामक सिक्के का प्रचार किसी समय एशिया और यूरोप के बहुत से भागों में था । यह कहीं सोने का, कहीं चाँदी का होता था । देशभेद से इसके मूल्य में भी भेद था । मुसमालनों के आने के बहुत पहले से भारतवर्ष में दीनार चलता था । 'हरिवंश' और 'महावीरचरित्' में दीनार का स्पष्ट उल्लेख है । साँची में बौद्ध स्तूप का जो बड़ा खंडहर है उसके पूर्वद्वार पर सम्राट् चंद्रगुप्त का एक लेख है । उस लेख में 'दीनार' शब्द आया है । अमरकोश में भी दीनार शब्द मौजूद है और निष्क के बरबर अर्थात् दो तोले का माना गया है । रघुनंदन के मत से दीनार ३२ रत्ती सोने का होता था । अकबर के समय में जो दीनार नाम का सोने का सिक्का जारी था उसका मान एक मिसकाल अर्थात् आधे तोले के अंदाज था । हिंदुस्तान की तरह अरब और फारस में भी प्राचीन काल में दीनार नाम का सिक्का प्रचलित था । अरबी फालकी के कोशकारों ने दीनार शब्द को अरबी लिखा है, पर फारस में दीनार का प्रचार बहुत प्राचीन काल में था । इसके अतिरिक्त रोमन (रोमक) लोगों में भी यह सिक्का दिनारियस के नाम से प्रचलित था । धात्वर्थ पर ध्यान देने से भी दीनार शब्द आर्यभाषा ही का प्रतीत होता है । अब प्रश्न यह होता है कि यह सिक्का भारत से फारस, अरब होते हुए रोम में गया अथवा रोम से इधर आया । यदि हरिवंश आदि संस्कृत ग्रंथों की अधिक प्राचीनता स्वीकार की जाय तो दीनार को इसी देश का मानना पडे़गा ।