संज्ञा

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अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

दिन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. उतना समय जिसमें सूर्य क्षितिज के ऊपर रहता है । सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का समय । सूर्य की किरणों के दिखाई पड़ने का सारा समय । विशेष— पृथ्वी अपने पक्ष पर घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है । इस परिक्रमा में इसका जो आधा भाग सूर्य की ओर रहने के कारण प्रकाशित रहता है, उसमें दिन रहता है, बाकी दूसरे भाग में रात रहती है । मुहा॰— दिन के तारे दिखाई देना = इतना अधिक मानसिक कष्ट पहुँचना कि बुद्धि ठिकाने न रहे । दिन को दिन रात को रात न जानना या समझना = अपने सुख या विश्राम आदि का कुछ भी ध्यान न रखना । जैसे,—इस काम के लिये उन्होंने दिन को दिन और रात को रात न समझना । दिन चढ़ना = सूर्योदय होना । सूर्य निकलने के उपरांत कुछ समय बीतना । दिन छिपना = सूर्यास्त होना । संध्या होना । दिन डूबना = सूर्य डूबना । संध्या होना । दिन ढलना = संध्या का समय निकट आना । सूर्यास्त होने को होना । दिन दहाडे़ या दिन दहाडे़ = बिलकुल दिन के समय । ऐसे समय जब कि सब लोग जागते और देखते हों । जैसे,— दिन दहाडे़ उनके यहाँ, दस हजार की चोरी हो गई । दिन दोपहर या दिन धौले = दे॰ 'दिन दहाडे़' । दिन दूना रात चौगुना होना या बढ़ना = बहुत जल्दी जल्दी और बहुत अधिक बढ़ना । खूब उन्नति पर होना । जैसे,— आजकल उनकी जमींदारी दिन दूनी रात चौगुनी हो रही है । उ॰— जो दिन दूनी और रात चौगुनी उन्नति करता ही चला जाता ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ ३१२ । दिन निकलना = दिन चढ़ना । सूर्योदय होना । दिन बूड़ना = दे॰ 'दिन डूबना' । दिन मुँदना = दे॰ 'दिन बूड़ना' । दिन होना = दिन निकलना । सूर्य उदय होना । दिन चढ़ना । यौ॰— दिन रात = सर्वदा । हर वक्त ।

२. उतना समय जितने में पृथ्वी एक बार अपने अक्ष पर घूमती है अथवा पृथ्वी के विशिष्ट भाग के दो बार सूर्य के सामने आने के बीच का समय । आठ पहर या चौबीस घंटे का समय । विशेष— साधारणतः दिन दो प्रकार का माना जाता है—एक नाक्षत्र, दूसरा सौर या सावन । नाक्षत्र उतने समय का होता है जितना किसी नक्षत्र को एक बार, याम्योत्तर रेखा पर से होकर जाने और फिर दुबारा याम्योत्तर रेखा पर आने में लगता है । यह समय ठिक उतना ही है जितने में पृथ्वी एक बार अपने अक्ष पर घूम चुकती है । इसमें घटती बढ़ती नहीं होती, इसी से ज्योतिषी नाक्षत्र दिनमान का व्यवहार बहुत करते हैं । सूर्य को याम्योत्तर पर से होकर जाने और फिर दोबारा याम्योत्तर रेखा पर आने में जितना समय लगता है उतने समय का सौर या सावन दिन होता है । नाक्षत्र तथा सौर दिन में प्रायः कुछ न कुछ अंतर हुआ करता है । यदि किसी दिन याम्योत्तर रेखा पर एक ही स्थान पर और एक ही समय सूर्य के साथ कोई नक्षत्र भी हो तो दूसरे दिन उसी स्थान पर नक्षत्र तो कुछ पहले आ जायगा पर सूर्य कुछ मिनटों के उपरांत आवेगा । यद्यपि नाक्षत्र और सावन दोनों प्रकार के दिन पृथ्वी के अक्ष पर घूमने से संबंध रखते हैं, और नक्षत्र के याम्यो- त्तर पर आने में बराबर उतना ही समय लगता है, तथापि सूर्य याम्योत्तर पर ठीक उतने ही समय में सदा नहीं आता, कुछ कम या अधिक समय लेता है, जिसके कारण सौर दिन का मान भी घटता बढ़ता रहता है । अतः हिसाब ठीक रखने और सुभीते के लिये एक सौर वर्ष को तीन सौ साठ भागों में विभक्त कर लेते हैं और उनके एक भाग को एक सौर दिन मानते हैं । हिंदुओं में दिन का मान सूर्योदय से सूर्योदय तक होता है और प्रायः सभी प्राचीन जातियों में सूर्योदय से सूर्योदय तक दिन का मान होता था । आजकल हिंदुओं और एशिया की दूसरी अनेक जातियों में तथा युरोप के आस्ट्रिया, टर्कि और इटली देश में भी सूर्योदय से सूर्योदय तक दिन माना जाता है । यूरोप के अधिकांश देशों तथा मिस्र और चीन में आधी रात से आधी रात तक दिन माना जाता है । प्राचीन रोमन लोग भी आधी रात से ही दिन का आरंभ मानते थे । आजकल भारतवर्ष में सरकारी कामों में भी दिन का प्रारंभ आधी रात से ही माना जाता है । पर अपनी गणना के लिये योरोप के ज्योतिषी मध्याह्न से मध्याह्न तक दिन मानते हैं । मुहा॰— दिन दिन या दिन पर दिन = नित्य प्रति । सदा । हमेशा । हर रोज ।

३. समय । काल । वक्त । जैसे,—(क) इतने दिन की रखी हुई चीज इसने खो दी । (ख) भले दिन, बुरे दिन । मुहा॰— दिन काटना = समय बितना । किसी तरह समय गुजार देना । दिन गँवाना = वृथा समय खोना । दिन पूरे करना = निर्वाह करना । समय बिताना । दिन बिगड़ना = बुरे दिन होना । विपत्ति का अवसर आना । दिन भुगताना दिन काटना । समय बिताना ।

दिन ^२ क्रि॰ वि॰ सदा । हमेशा । दिन—प्रतिदिन । उ॰—(क) बावरो रावरो नाह भवानी । दानी बड़ो दिन दिए बिनु बेद बड़ाई भानी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) गुरु पितु मातु महेस भवानी । प्रणवहुँ दीनबंधु दिन दानी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) हिंडोरे झूलत लाल दिन दूलह दुलहिन बिहारी देखि री ललना ।—हरिदास (शब्द॰) ।

दिन दिन क्रि॰ वि॰ [सं॰ दिनानुदिन] प्रतिदिन । कालक्रम से रोजमर्रा । उ॰— दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ । देखि सराह महा मुनि राऊ ।—मानस, १ । ३६० ।

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