प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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दाना ^१ संज्ञा पुं॰ [फा़॰दानह्]

१. अनाज का एक बीज । अन्न का एक कण । कन । यौ॰— दाना दुनका = अन्न के दो चार कण । थोड़ा सा अन्न । उ॰— गली के पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व दाने दुनके और गिलाजत की खौज में घावे करता ।— अभिशप्त, पृ॰ ९५ । मुहा॰—दाने दाने को तरसना = अन्न का कष्ट सहना । भोजन न पाना । दाने को मुहताज = अत्यंत दरिद्र । दाना बदलना = एक पक्षी का अपने मुँह का दाना दूसरे पक्षी के मुँह में डालना । चारा बाँटना । दाना भराना = चिडियों का अपने बच्चों के मुँह में चारा डालना ।

२. अनाज । अन्न । जैसे,— तुम तो इतने दुबले हो कि जान पड़ता है, कभी दाना नहीं पात्ते । यौ॰—दाना चारा । दाना पानी । क्रि॰ प्र॰—चबाना ।—चाबना ।—भुनाना ।

४. कोई छोटा बीज जो बाल, फली या गुच्छे में लगे । जैसे, राई का दाना, पोस्ते का दाना ।

५. ऐसे फल के अनेक बीजों में से एक जिसके बीज कडे़ गूदे के साथ बिलकुल मिले हुए अलग अलग निकलें । जैसे, अनार का दाना । विशेष— आम, कटहल, लीची इत्यादि फलों के बीजों को दाना नहीं कहते ।

६. कोई छेटी गोल वस्तु जो प्रायः बहुत सी एक में गूँथ, पिरो, या जोड़कर काम में लाई जाती हो । जैस, मोती का दाना । उ॰— बरसैं सु बूदैं मुकतान ही के दाने सी ।— पद्माकर (शब्द॰) ।

७. ऐसी बहुत सी छोटी वस्तुओं (या अंगों) में से एक जिनके एक में गूँथने या जोड़ने से कोई बड़ी वस्तु बनी हो । जैसे, घुँघरू का दाना, बाजूबंद का दाना ।

८. माला की गुरिया । मनका । उ॰— गले में सोने के बडे़ बडे़ दाने पडे़ हैं ।— प्रताप (शब्द॰) ।

९. गोल या पहलदार छोटी वस्तुओं के लिये संख्या के स्थान पर आनेवाला शब्द । अदद । जैसे, चार दाने मिर्च, चार दाने अंगूर ।

१०. रवा । कण । कणिका । जैसे, दानेदार घी या शराब ।

११. किसी सतह पर के छोटे छोटे उभार जो टटोलने से अलग अलग मालूम हों । जैसे, नारंगी के छिलके पर के दाने, दानेदार चमड़ा ।

१२. शरीर के चमडे पर महीन महीन उभार जो खुजलाने या रोग के कारण हो जाते हैं । जैसे, अँभौरी या पित्ती के दाने, चेचक के दाने ।

१३. बरतन की नक्काशी में गोल उभार (कसेरे) । क्रि॰ प्र॰—देना । मुहा॰—दाने का माल = वह बरतन जिसकी नक्काशी उभारी नहीं जाती ।

दाना ^२ वि॰ [फा़॰ दाना] बुद्धिमान । अक्लमंद ।