दस्यु

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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

दस्यु संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. डाकू । चोर ।

२. रिपु । शत्रु । (को॰) ।

३. असुर । अनार्य । म्लेच्छ । दास । उ॰—आशा की मारी देवी उस दस्यु देश में जीती थी ।—साकेत, पृ॰ ३८८ । विशेष—दस्युओं का वर्णन वेदों में बाहुत मिलता है । आर्यों के भारतवर्ष में चारों ओर फैलने के पहले ये छोटी छोटी बस्तियों में इधर उधर रहते थे और आर्यों को अनेक प्रकार के कष्ट पहुँचाते थे, उनके यज्ञों में विघ्न डानते थे, उनके चौपाए चुरा ले जाते थे तथा और भी अनेक प्रकार के उपद्रव करते थे । अनेक मंत्रों में इन य़ज्ञहीन, अमानुष दस्युओं का नाश करने की प्रार्थना इंद्र से की गई है । नमुचि, शंबर और धृत्र नामक दस्युपतियों के इंद्र के हाथ से मारे जाने का उल्लेख ऋग्वेद में कई स्थानों पर है । जैसे, 'हे इंद्र' तुमने दस्यु शंबर की सौ से अधिक पुरियों को नष्ट किया । 'हे इंद्राग्नि तुमने एक बार में ही दासों की नब्बे पुरियों को हिला डाला ।' 'हे इंद्र' तुमने कुलितर के पुत्र दास शंबर को ऊँचे पर्वत के ऊपर मुँह के बल गिराकर मार डाला । 'तुमने मनुष्यों कै सुख की इच्छा से दास नमुचि का सिर चूर्ण किया ।' वेदों में दस्युओं के लिये दास और असुर शब्द भी आए हैं । इन दस्युओं के 'पणि' आदि कई भेद थे । पीछे जब कुछ दस्यु सेवा आदि के लिये मिला लिए गए तब उलकी उत्पत्ति के संबंध में कुछ कथाएँ कल्पित की गई । ऐतरेय ब्राह्मण में वे विश्वा- मित्र द्वारा उत्पन्न और शाप द्वारा भ्रष्ट बतलाए गए हैं । मनुस्मृत्ति में लिखा है कि 'ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों में जो क्रियालुप्त और जाति बाहर हो गए हैं वे सब चाहे म्लेच्छभाषी हों चाहे आर्यभाषी, दस्यु कहलाते हैं' । महाभारत में लिखा हैं कि अर्जुन ने दरदों के सहित कांबोज तथा उत्तरपूर्व के जो दस्यु थे उन्हें भी परास्त किया । द्रोणपर्व में दाढी़वाले दस्युओं का भी उल्लेख हैं । इन दस्युओं के बीच निवास करना ब्राह्मण आदि के लिये निषिद्ध था ।