प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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थाह संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्था]

१. नदी, ताल, समुद्र इत्यादि के नीचे की जमीन । जलाशय का तलभाग । धरती का वह तल जिसपर पानी हो । गहराई का अंत । गहराई की हद । जैसे,—जब थाह मिले तब तो लोटे का पता लगे । क्रि॰ प्र॰—पाना ।—मिलना । मुहा॰—थाह मिलना = जल के नीचे की जमीन तक पहुँच हो जाना । पानी में पैर टिकने के लिये जमीन मिल जाना । डूबते को थाह मिलना = निराश्रय को आश्रय मिलना । संकट में पड़े हुए मनुष्य को सहारा मिलना ।

२. कम गहरा पानी । जैसे,—जहाँ थाह वहाँ तो हलकर पार कर सकते हैं । उ॰—चरण छूते हो जमुना थाह हुई ।— लल्लू (शब्द॰) ।

३. गहराई का पता । गहराई का अंदाज । क्रि॰ प्र॰—पाना ।—मिलना । मुहा॰—थाह लगना = गहराई का पता चलना । थाह लेना = गहराई का पता लगाना ।

४. अंत । पार । सीमा । हद । परिमित । जैसे,—उनके धन की थाह नहीं हैं ।

५. संख्या, परिमाण आदि का अनुमान । कोई वस्तु कितनी या कहाँ तक है इसका पता । जैसे,—उनकी बुद्धि की थाह इसी बात से मिल गई । क्रि॰ प्र॰—पाना ।—मिलना ।—लगना । मुहा॰—थाह लेना = कोई वस्तु कितनी या कहाँ तक है इसकी जाँच करना ।

६. किसी बात का पता जो प्रायः गुप्त रीति से लगाया जाय । अप्रत्यक्ष प्रयल से प्राप्त अनुसंधान । भेद । जैसे,—इस बात की थाह लो कि वह कहाँ तक देने को तैयार हैं । क्रि॰ प्र॰—पाना ।—लेना । मुहा॰—मन की थाह = अंतःकरण के गुप्त अभिप्राय की जानकारी । चित्त की बात का पता । संकल्प या विचार का पता । उ॰—कुटिल जनन के मनन की मिलति न कबहूँ थाह ।— (शब्द॰) ।