थप्परि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्थापन, प्रा॰ थप्पण] न्यास । घरोहर । उ॰— राज सुनो चालुक कहै है थप्परि इह कंघ । राति परी जुव नहिं करैं प्राप्त करै फिर जुद्ध ।— पृ॰ रा॰, १ । ४६१ ।