प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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त्रिदोष संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वात, पित्त और कफ ये तीनों दोष । दे॰ 'दोष' । उ॰— गदशत्रु ञिदोष ज्यों दूरि करै वर । त्रिशिरा सिर त्यौं रघुनंदन के शर ।—केशव (शब्द॰) ।

२. वात, पित्त और कफ जनित रोग, सन्निपात । उ॰—यौवन ज्वर जुवती कुपत्थ करि भयो त्रिदोष भरि मदन बाय ।—तुलसी (शब्द॰) ।