प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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त्रित संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक ऋषि का नाम जो ब्रह्मा के मानस- पुत्र माने जाते हैं ।

२. गौतम मुनि के तीन पुत्रों में से एक जो अपने दोनों भइयों से अधिक तेजस्वी और विद्वान् थे । विशेष—एक बार ये अपने भाइयों के साथ पशुसंग्रह करने के लिये जंगल में गए थे । वहाँ दानों भाइयों ने इनके संग्रह किए हुए पशु छीनकर और इन्हें अकेला छोड़कर घर का रास्ता लिया । वहाँ एक भेड़िए को देखकर ये डर के मारे दौड़ते हुए एक गहरे अंधे कुएँ में जा गिरे । वहीं इन्होंने सोमयाग आरंभ किया जिसमें देवता लोग भी आ पहुँचे । उन्हीं देवताओं ने उस कुएँ से इन्हें निकाला । महाभारत में लिखा है कि सरस्वती नदी इसी कुएँ से निकली थी ।