त्रिकूर्चक संज्ञा पुं॰ [सं॰] सुश्रुत के अनुसार फोडे़ आदि चीरने का एक शस्त्र जिसका व्यवहार बालक, वृद्ध, भीरु, राजा आदि की अस्त्रचिकित्सा के लिये होना चाहिए ।